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13 नवम्बर 2024 । Evening bulletin। Shreephal jain news ।
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आप देख रहे हैंं श्रीफल जैन न्यूज का इवनिंग बुलेटिन। आप सभी का स्वागत है, मैं हूं रेखा जैन, आज के इस बुलेटिन में उपनयन संस्कार अर्थात यज्ञोपवीत, जनेऊ संस्कार के बारे में आगम,साधु संत और विद्वान क्या कहते हैं, इसके बारे में जानेंगे। तो चलिए उपनयन पर विस्तार से आज के बुलेटिन में जानते है.......
लोकेशन इंदौर
स्टोरी रेखा संजय जैन संपादक श्रीफल जैन न्यूज
उत्तर भारत में उपनयन संस्कार के अनुष्ठान विस्तार और वृहद रूप से होने लगे है । दक्षिण भारत में समय समय पर होते रहते है । जैसे जैसे अनुष्ठान अधिक होने लगे है वैसे वैसे मन की जिज्ञासा भी बढ़ने लगी है । कई प्रश्न खड़े होने लगे। उन प्रश्नों का उतर आगम में क्या है , गणिनी आर्यिका सुपार्श्वमति माता जी ,अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज और शास्त्री परिषद के अध्यक्ष डॉक्टर श्रेयांश जैन क्या कहते है ।
उपनयन संस्कार कब किया जाता है ?
महापुराण ग्रन्थ में लिखा है कि बच्चा जब 8 वर्ष का हो जाता है तब यह संस्कार किया जाता है ।
उपनयन संस्कार के क्या नियम होते है ?
महापुराण ग्रन्थ में लिखा हैं यज्ञोपवीत धारण करने वाले पुरुषों को माँस रहित भोजन करना चाहिए, अपनी विवाहिता कुल-स्त्री का सेवन करना चाहिए, अनारंभी हिंसा का त्याग करना चाहिए और अभक्ष्य तथा अपेय पदार्थ का परित्याग करना चाहिए। अष्टमूलगुण का पालन करना चाहिए।
उपनयन संस्कार की विधि क्या है
महापुराण ग्रन्थ में लिखा है कि आठवें वर्ष यज्ञोपवीत धारण कराते समय, केशों का मुंडन तथा पूजा विधिपूर्वक योग्य व्रत ग्रहण कराके बालक की कमर में मूंज की रस्सी बाँधनी चाहिए। यज्ञोपवीत धारण करके, सफेद धोती पहनकर, सिर पर चोटी रखने वाला वह बालक माता आदि के द्वार पर जाकर भिक्षा माँगे। भिक्षा में आगम द्रव्य से पहले भगवान् की पूजा करे, फिर शेष बचे अन्न को स्वयं खाये। अब यह बालक ब्रह्मचारी कहलाने लगता है ।
जनेऊ कितने धागे के तार की पहनते है ?
महापुराण में लिखा है कि
सात तार धागे की सप्त परम स्थान का प्रतीक
तीन तार धागे की रत्न्त्रय का प्रतीक
एक प्रतिमा से लेकर 11 प्रतिमा धारण करने वाला जितनी प्रतिमा उतने तार का उपनयन पहनता हैं ।
इसके अलाव जिनका विवाह हो गया वह छः तार की पहनता है।
यज्ञोपवीत धारण करने का पात्र कौन होता है
महापुराण ग्रन्थ में लिखा है कि
जो दीक्षा के अयोग्य कुल में उत्पन्न हुए हैं तथा नाचना, गाना आदि विद्या और शिल्प से अपनी आजीविका पालते हैं ऐसे पुरुष को यज्ञोपवीतादि संस्कार की आज्ञा नहीं है। किंतु ऐसे लोग यदि अपनी योग्यतानुसार व्रत धारण करें तो उनके योग्य यह चिह्न हो सकता है कि वे संन्यासमरण पर्यंत एक धोती पहनें।
उपनयन संस्कार को कितने समय रखना चाहिए ?
नित्य स्वाध्याय पुस्तक में लिखा है कि संस्कार जो भी है वह जीवन भर के लिए होते है, इसलिए उपनयन संस्कार भी जीवन भर के लिए ही होगा ।
डॉक्टर श्रेयांस जैन ने क्या कहा उपनयन संस्कार को लेकर सुने
आर्यिका गणिनी श्री सुपार्श्व मति माता ने अपने प्रवचन में कहा कि बिना उपनयन के भगवान का अभिषेक, पूजन, दान नहीं कर सकता है । माता जी ने प्रवचन में कहा कि उपनयन के बिना दान, पूजा पाप का कारण है । प्रवचन के अंश नित्य स्वाध्याय पुस्तक में लिखे है ।
अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज में अपने एक आलेख में कहा....
अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज कहते है कि भगवान आदिनाथ ने भी अपने बेटे भरत का उपनयन संस्कार अपने हाथों से किया था। उनका कहना है कि यह संस्कार होने के बाद उसे जीवन भर नहीं निकालना चाहिए , निकालते है तो आगम के विरुद्ध होगा और धीरे धीरे परम्परा के नाश का कारण होगा ।
वैज्ञानिक क्या कहते है ?
स्वप्न नहीं आते है, हृदय रोग नहीं होता है, दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोग से बचते है, खून का प्रवाह सही होता है, शुक्राणुओं की रक्षा होती है, मस्तिष्क की नशे अच्छी रहती है, स्मरण शक्ति बढ़ती है ।
आगम में यज्ञोपवीत पहने का मंत्र
ॐ नमो परम - शान्ताय शान्तिकराय पवित्रीकृतायाहं रत्नत्रय स्वरूपं यज्ञोपवीतं दधामि। मम गात्रं पवित्रं भवतु अर्ह नमः स्वाहा।