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Evening bulletin 25 ।
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मैं हूं रेखा जैन....आप देख रहे हैं.... श्रीफल जैन न्यूज का ईवनिंग बुलेटिन....जैन धर्म में तिर्यंच शब्द का प्रयोग... उन जीवों के लिए किया जाता है जो मनुष्य या देवता की तुलना में निम्नतर अस्तित्व में होते हैं... जैसे कि पशु... पक्षी... कीड़े-मकौड़े, आदि। तिर्यंच गति का अर्थ है... वह जन्म जो जीव किसी कारणवश पशु... पक्षी... या अन्य किसी निम्नतर रूप में...लेते हैं। यह जन्म... जीव के कर्मों के... कारण होता है...आज के बुलेटिन में हम...इसी तिर्यंच गति की चर्चा करेंगे...और जानेंगे...क्या हैं तिर्यंच गति में ...जन्म लेने के कारण । इसके साथ ही श्री 1008 अजितनाथ त्रिमूर्ति जैन मंदिर, मॉडर्न सिटी का प्रथम वार्षिक उत्सव और अंजनी नगर में हुए युवक युवती परिचय सम्मेलन के साथ आइए...शुरुआत करते हैं...आज के बुलेटिन की...
न्यूज 1
लोकेशन इंदौर
स्टोरी रेखा संजय जैन, संपादक, श्रीफल जैन न्यूज
1.
जब हम पशु, पक्षी, पेड़, पौधे, और कुत्ते जैसे जानवरों को देखते हैं, तो मन में दया आती है। हम सोचते हैं कि किस कारण यह जीव इस प्रकार के पर्याय में जन्मे हैं। और हम भगवान से यह प्रार्थना करते हैं कि हमें कभी ऐसे पर्याय में जन्म न मिले। यही विचार और भावना हमारे मन में होती है।
2.
जैन धर्म में कर्म सिद्धांत को समझाने वाले कई ग्रंथों में कहा गया है कि एक जीव का भाव, विचार, और क्रिया इस बात पर निर्भर करता हैं, कि उसे कहां जन्म लेना है। अच्छे भाव, विचार और क्रिया के साथ देव, मनुष्य और बुरे भाव, विचार और क्रिया के साथ नरक, तिर्यंच गति (पशु योनि) में जन्म होता है। आज हम इस विषय पर चर्चा करेंगे कि क्यों मनुष्य तिर्यंच गति में जन्म लेता है।
3.
आचार्य उमास्वामी का तत्त्वार्थ सूत्र
आचार्य उमास्वामी ने अपने तत्त्वार्थ सूत्र ग्रंथ में कहा है:
"माया तैर्यग्योनस्य"
मायाचारी करने से तिर्यंच योनि मिलती है
(श्लोक इसका अर्थ स्क्रीन पर दिखाना है)
वह व्यक्ति, जो मन, वचन और काय (शरीर) में भेद करता है, झूठ बोलता है, मापतोल में धोखा करता है, कपट और धोखाधड़ी करता है, मांसाहार करता है, वह तिर्यंच गति में जन्म लेता है। इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति मायाचारी कार्यों को करता है और हम उसकी अनुमोदना या प्रशंसा करते हैं, तो हम भी तिर्यंच गति में जन्म लेते हैं। इसके अलावा, अन्य ग्रंथों में भी यह बताया गया है कि आहार, वासना और अन्य अधिक इच्छाओं का पालन करने वाले व्यक्ति तिर्यंच गति में जन्म लेते हैं।
4.
आचार्य कुंथुसागर जी के विचार
ऐनापुर वाले आचार्य श्री कुंथुसागर जी ने अपने भावत्रयफलप्रदर्शी में तिर्यंच गति में जन्म लेने के कारण बताए हैं। उन्होंने कहा:
1. ईर्ष्या, अभिमान, वैर, विवाद और बिना कारण इधर-उधर फिरने वाला व्यक्ति कुत्ता होता है।
2. अन्न, पान, दूध, दही की इच्छा से अपने भाई का धन हरण करने वाला व्यक्ति बिल्ली होता है।
3. क्रूर स्वभाव, दूसरों को मारने का विचार करने वाला, मांसाहार करने वाला व्यक्ति सिंह होता है।
4. जो बिना सोचे-समझे कहीं भी, किसी के हाथ का भी भोजन कर लेता है और रहन-सहन का ध्यान नहीं रखता, वह गाय होता है।
5. जो बिना प्रयोजन के बकवास करता है, बिना सोचे-बुझे बुरा काम करता है, अपनी प्रशंसा और दूसरों की निंदा करता है, वह बकरा होता है।
6. अभक्ष्य, मलिन और निंदनीय पदार्थ खाने वाला, कड़वे वाक्य बोलने वाला और होटल आदि में खाने वाला व्यक्ति कौआ बनता है।
7. अभिमान में आकर देव, शास्त्र और गुरु की वंदना नहीं करने वाला व्यक्ति वृक्ष बनता है।
5.
निष्कर्ष:
इन सभी कारणों को जानने के बाद, व्यक्ति को अपने भाव, विचार, आहार, रहन-सहन और कार्यों में सुधार लाना चाहिए। अन्यथा, उसे तिर्यंच गति में जन्म लेना पड़ सकता है।
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6.
यह भी जानें:
1. तिर्यंच आंशिक संयम को धारण कर सकते हैं।
2. क्षेत्र के मुकाबले, पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के दो भेद होते हैं - कर्मभूमिज तिर्यंच और भोगभूमिज तिर्यंच।
3. तिर्यंच का पांचवां गुणस्थान होता है।
4. भोगभूमि में सिंह जैसे तिर्यंच भी शाकाहारी होते हैं।
5. तिर्यंच की आयु में उत्कृष्ट और जघन्य दोनों प्रकार की आयु होती है।
6. एक इन्द्रिय से असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक के तिर्यंच का पहला गुणस्थान होता है।
7. सातवें नरक का जीव मरने के बाद तिर्यंच में जन्म लेता है।
8. भोगभूमिज तिर्यंचों के पास केवल सुख होता है, जबकि कर्मभूमिज तिर्यंचों के पास सुख और दुख, दोनों होते हैं।
स्लग - जानें तिर्यंच गति में जन्म लेने के कारण
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