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बेहतर बातें करने और बेहतर होने में फ़र्क़ है ।
ज़र की सिर्फ़ चमक रखने और ज़र होने में फ़र्क़ है
जैसे तुम कुछ वक़्त के लिए दिली सजावट बनते हो ।
चौखट ही बन जाओ क्यों सरताज रुकावट बनते हो ।
जिस पे ता’ला लगने की गुंजाइश नहीं है बिल्कुल भी ;
दरवाज़ा होने में और इक दर होने में फ़र्क़ है ।
यूँ तो आलीशान इमारत में भी सोते रहते हैं ,
दौलतमंद-अमीर बात ये सब आख़िर में कहते हैं ।
उम्दा कमरे हर इक शख़्स किराए पर ले सकता है ;
चार-दीवारी होने में और घर होने में फ़र्क़ है ।
कुछ लोगों ने जीए हैं और कुछ ने सिर्फ़ गुज़ारे हैं।
ज़िंदगानीयाँ जीने की जानिब ये फ़क़त इशारे हैं ।
जाना चाहे एक ही मंज़िल पर होता है सब ने पर ;
सफ़र ख़त्म होने और सफ़र के सर होने में फ़र्क़ है ।
बेहतर बातें करने और बेहतर होने में फ़र्क़ है ।
ज़र की सिर्फ़ चमक रखने और ज़र होने में फ़र्क़ है