Fir Vyarth Mila Hi kyu Jeevan | Shivmangal Singh Suman | Hindi Kavita | पलकों के पलने पर प्रेयसि यदि

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Fir Vyarth Mila Hi kyu Jeevan | Shivmangal Singh Suman | Hindi Kavita | पलकों के पलने पर प्रेयसि यदि
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शिवमंगल सिंह 'सुमन' का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के झगरपुर में हुआ था। वे रीवा, ग्वालियर आदि स्थानों मे रहकर आरम्भिक शिक्षा प्राप्त की है | एक अग्रणी हिंदी लेखक और कवि थे। उन्होंने एक एम ए और पी एच.डी. अर्जित किया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में उन्हें 1950 में डी. लिट. के साथ भी सम्मानित किया गया।____________________________________________________________________________________________
Credits:-
Poem by :- Shivmangal Singh 'Suman'
Recited by :- Surender Prajapati
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पलकों के पलने पर प्रेयसि यदि क्षण भर तुम्हें झुला न सका
विश्रांत तुम्हारी गोदी में अपना सुख-दुःख भुला न सका
क्यों तुममें इतना आकर्षण, क्यों कनक वलय की खनन-खनन
फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन
आहों से शोले, नयनों से निकली यदि चिनगारी न प्रखर
अधरों में भर असीम तृष्णा यदि पी न सका अहरह सागर
लेकर इतनी वेदना व्यथा, किस योग मिला फिर यह यौवन
फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन
अपने क्रंदन को निर्बल के रोदन में अगर मिला न सका
हाहाकारी चीत्कारों से प्रस्तर उर हाय हिला न सका
बन मन की मुखरित आकांक्षा, किस अर्थ मिला फिर चिर-क्रंदन
फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन
निश्वासों की तापों से यदि शोषक हिमदुर्ग गला न सका
उर उच्छ्वासों की लपटों से सोने के महल जला न सका
क्यों भाव प्रबल, क्यों स्वर लयमय, किस काम हमारा यह गायन
फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन
यदि निपट निरीहों का संबल बनने की तुझमें शक्ति न थी
यदि मानव बन मानवता के हित मिटने की अनुरक्ति न थी
क्यों आह कर उठा था उस दिन, क्यों बिखर पड़े थे कुछ जलकण
फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन
अग्नि-स्फुलिंग-मय वाणी से पल पल पावक कण फूँक-फूँक
यदि कर न सका परवशता की यह लौह शृंखला टूट-टूक
क्यों बलिदानी इतना आतुर, क्यों आज बेड़ियों की झनझन
फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन
यदि अटल साधना के बल पर कर पाया विष मधुपेय नहीं
यदि आत्म-विसर्जन कर तुममें पाया अपना चिर-ध्येय नहीं
क्यों जग-जग में परिवर्तन मिस, बनता मिटता रहता कण-कण
फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन।
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