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गढ़ा राज्य या गोंड वंश की स्थापना
गड़ा राज्य की स्थापना सेहल गांव
निवासी जोध सिंह पटेल के पुत्र
यादवराय ने 1328 से 1440 ईसवी
के मध्य स्थित अंधकार युग में की
थी।
एक किंवदंति के अनुसार मां नर्मदा ने
यादव राय को स्वप्न देख कर सर्वे
पाठक की सहायता से गढ़ा वंश की
स्थापना हेतु आदेशित किया जिससे
प्रेरणा लेकर उसने गढ़ा की
राजकुमारी रत्नावली से विवाह किया।
तदुपरांत गढ़ा वंश की नींव डाली।
गढ़ा वंश के संस्थापक के रूप में
यादव राय की पुष्टि 'रामनगर शिलालेख'
के उल्लेख से होती हैं इसी वंश के बाद
में पुलस्त्य वंशी संग्राम शाह जैसे प्रतापी
शासक हुए वहीं इसी साम्राज्य में
वीरांगना दुर्गावती भी हुई।
इस वंश के प्रमुख राजा थे।
1.यादव राय (1328-1440)
गोंड वंश के संस्थापक यादवराय थे ।
प्रारंभिक जीवन में यादव राय ने लाॅजी
(बालाघाट) के हैहय वंशी शासक के यहां
नौकरी प्रारंभ की तत्पश्चात मां नर्मदा की
प्रेरणा से दमोह के शासक की पुत्री
रत्नावली से विवाह कर कालांतर में गढ़ा
वंश की स्थापना की।
अकबरनामा के अनुसार यादव राय का
उत्तराधिकारी खरजी हुआ इसके बाद
क्रमशः गौरक्षक दास, सुखदास, अर्जुन
दास, संग्राम सिंह उत्तराधिकारी हुए।
अकबरनामा के अनुसार खरजी लगभग
1440 ईसवी में शासक बना जो कि
अपनी योग्यता व चालाकी से प्रदेश के
अन्य शासकों से पेशकस वसूल किया
करता था।
इस प्रकार उसने एक संगठित सेना एकत्रित
कर गणराज्य के उत्कर्ष में योगदान दिया
खरजी ने लगभग 1460 ईसवी तक शासन
किया तत्पश्चात को गोरक्षक गद्दी पर बैठा।
इसी के समय में 1467 ईस्वी में मालवा के
सुल्तान महमूद शाह के सैन्य अधिकारी ने
किला अमरेल के बागी शासक रायचीता
को पराजित किया इस घटना का उल्लेख
शिहाब- हकीम ने अपनी पुस्तक
'मासिर-ए-महमूदशाही में किया।
इनके पश्चात सुखनदास या संगिनदास
1480 में गद्दी पर बैठा। इसने सर्वप्रथम
सैन्य शक्ति को बढ़ाते हुए 500 घुड़सवार
तथा 60000 की पैदल सेना का गठन
किया।
साथ ही विभिन्न जाति समुदायों के सहयोग
से राज्य को स्थापित तथा सुदृढ़ बनाया
वहीं पड़ोसी राज्यों से भी अच्छे संबंध
स्थापित किए लगभग 1500 ईस्वी में
संगिनदास का शासन समाप्त हुआ तथा
उसका उत्तराधिकारी अर्जुन राज गद्दी
पर बैठा। अकबरनामा के अनुसार
राज्यारोहण के समय उसकी आयु 40
वर्ष थी और राज्यारोहण के तुरंत बाद
उसे अपने जेष्ठ पुत्र अमान दास
(आम्हणदास) के विद्रोह का सामना करना
पड़ा
अर्जुन दास ने आम्हणदास से रूष्ठ होकर
अपने छोटे पुत्र जोगीदास को शासक
नियुक्त किया जिससे क्रोधित होकर
आम्हणदास ने षडयंत्र पूर्वक अपने पिता
अर्जुन दास की हत्या कर दी जिससे क्षुब्ध
होकर जनता ने आम्हणदास को बंदी
बना लिया जिसका फायदा उठाकर रीवा
नरेश वीर सिंह देव ने गढ़ा पर आक्रमण
कर विजय प्राप्त की परंतु आम्हणदास
द्वारा अपने कृत्य के लिए माफी मांगने
के कारण वीर सिंह देव ने उसे गढ़ा का
राज्य लुटा दिया।
ठर्रका (दमोह) के दो सती लेखों के
आधार पर आम्हणदास लगभग 1510-13
ईसवी के मध्य सिंहासन पर बैठा।
सिंहासन रूढ़ होने के उपरांत आम्हणदास
ने 'महाराजा श्री राजा आम्हणदास देव'
की पदवी धारण की।
फरिश्ता के अनुसार इसी के समय रतनपुर में
कलचुरी वंश के शासक पुरुषोत्तम सहाय का
शासन था सुल्तान इब्राहिम लोदी का कृपा
पात्र बनने के उद्देश्य से विद्रोही भाई जलाल
को पकड़कर सन्1528 वी में सुल्तान को
सौंप दिया।
तत्पश्चात आम्हणदास में संग्रामशाह/
संग्राम सिंह की उपाधि धारण की जिसका
साक्ष्य दमोह से प्राप्त एक जोक और सोने
के सिक्के पर अंकित 'संग्राम सिंह' से
मिलता है।
संग्राम शाह की पदवी गुजरात के शासक
सुल्तान बहादुर ने रायसेन विजय में सहायता
देने के कारण दी थी।
आम्हणदास की दो पत्नियों पद्मावती तथा
सुमति का उल्लेख उसके संस्कृत ग्रंथ 'रस
रत्ना माला' से मिलता है।
पद्मावती से ही 2 पुत्र दलपतशाह व चंद्र
शाह प्राप्त हुए। कालांतर में इन्हीं दलपत
शाह से चंदेल राजकुमारी दुर्गावती का
विवाह हुआ था।
जबलपुर से प्राप्त ताम्रपत्र के अनुसार
दलपत शाह ने 1543 में उसने राज्यारोहण
के पश्चात श्री महाराजाधिराज श्री राजा की
उपाधि धारण की। दलपत शाह ने राज्यारोहण
के पश्चात अपनी राजधानी गढ़ा से जबलपुर
दमोह मार्ग पर अवस्थित संग्रामपुर ग्राम के
निकट विंध्याचल पर्वत श्रेणी पर स्थित
सिंगौरगढ़ किले में स्थानांतरित की।
1550 ईस्वी में दलपत शाह की असमय
मृत्यु के कारण उत्पन्न हुई विषम
परिस्थितियों तथा उत्तराधिकारी वीर
नारायण देव की कम आयु के कारण
उसे उत्तराधिकारी घोषित कर संरक्षिका
के रूप में रानी दुर्गावती ने राज्य की
बागडोर अपने हाथों में ले ली।
पड़ोसी राज्य से राजधानी को सुरक्षित
करने के उद्देश्य से रानी ने 1553 ईसवी
के आसपास राजधानी सिंगौरगढ़ के स्थान
पर सतपुड़ा पर्वत श्रेणी पर स्थित
मजबूत किले चौरागढ़ को बनाया जो
1634 इसवी तक गढ़ा राज्य की राजधानी
रहा।
दुर्गावती का शासन शुरू होने के पश्चात
1556 ईस्वी में शुजातखाॅं के पुत्र वह मालवा
के शासक बाज बहादुर ने गढ़ा राज्य पर
आक्रमण किया।
इस प्रथम आक्रमण में चाचा फतह खा
युद्ध भूमि में मारा गया तथा बाज बहादुर
सारंगपुर वापस चला गया।
दूसरा आक्रमण बाज बहादुर ने पुनः गढ़ा
पर किया परंतु पराजित होने तथा सेना
को भारी क्षति होने के कारण गढ़ा जीतने
का विचार त्याग दिया।