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सिद्धांत सार :
विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु एवं काशी विद्वत परिषत् द्वारा जगद्गुरूत्तम की उपाधि से विभूषित श्री कृपालु जी महाराज को 'सनातनवैदिकधर्मप्रतिष्ठापन सत्सम्प्रदाय परमाचार्य' की उपाधि से भी अलंकृत किया गया है। इस दृष्टि से श्री महाराज जी के श्रीमुख से निकले दिव्य श्रीवचन ही वास्तविक सनातन वैदिक धर्म के उद्घोषक हैं। श्री महाराज जी ने हम कलियुगी जीवों के कल्याणार्थ समस्त वेद शास्त्रों का सार अपने दिव्य प्रवचनों में अत्यंत सरल एवं रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। इस प्रवचन श्रृंखला में श्री महाराज जी के अलौकिक प्रवचनों के अति विशिष्ट अंश प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
दिनांक 20.10.1989 को श्री महाराज जी ने 'प्रेम की सर्वोच्च कक्षा' को प्रतिपादित करने हेतु 'गोपी-उद्धव संवाद' पर आधारित अपने एक स्वरचित पर 'ऊधो! कहियो हरि समुझाय' की व्याख्या की। यह व्याख्यान गोपी-प्रेम, सकाम-निष्काम भक्ति, सगुण-निर्गुण ब्रह्म का स्वरूप इत्यादि कई अति गंभीर विषयों को अत्यन्त सरल ढंग से सुस्पष्ट कर देता है। इस वीडियो में भक्तियोग रसावतार श्री महाराज जी की रसमय शैली का अद्भुत आकर्षण मन को बाँध लेता है।