Рет қаралды 3,752
गोपियों का कृष्ण अनुराग कैसा था? - जानिए श्री रामकृष्ण परमहंस के वचनो से |
Learn from a great enlightened soul Shri Ramakrishna Paramhansa
श्रीरामकृष्ण कथामृत - 34
Sri Ramkrishna Kathamrit - 34
आप जो भी इस वीडियो में सुन रहे हैं, वो "श्री श्री रामकृष्ण कथामृत" पुस्तक से ली गयी है।
"श्री श्री रामकृष्ण कथामृत" पुस्तक श्री 'म' (महेन्द्रनाथ गुप्त / मास्टर महाशय) द्वारा लिखी गयी है | ये पुस्तक श्री रामकृष्ण देव के वचनो का संकलन है |
आज ठाकुर श्रीरामकृष्ण गोपिओं के 'कृष्ण-अनुराग' के बारे में चर्चा कर रहे हैं। ठाकुर ने गाना गाने के लिए कहा। रामलाल और कालीबाड़ी के एक ब्राह्मण कर्मचारी गाना गाने लगे, जिसका भावार्थ कुछ इस तरह का है....
प्रिय श्याम का चाँद-जैसा रूप देखकर अब नव नीरद बादलों का वर्ण किस गिनती में है? हाथ में बंसी, होठों पर हँसी लिए अपने रूप से जगत को रोशन कर रहे हैं। पीतवस्त्र में लिपटे हुए वे मानो बिजली से झलमल कर रहे हैं। उनके हदयकमल पर वनमाल चरणों तक झूल रही है। युवा गोपियों के संग यमुना के तट को प्रकाशित करते हुए वे नन्दकुल के चंद्र अनन्त चंद्रो को भी लजा रहे हैं। हे सखि, वे गुणों के धाम वहाँ खड़े हुए अपनी बंसी के स्वर से मेरे प्राण, मन, होश सब हरण करके मेरे हृदय-मन्दिर में प्रवेश कर गए हैं। जो दुःख मुझे है, वो मैं किससे कहूँ? ओ सखि, तुम यदि यमुना जी के तट पर जल लेने जाती तो अपने-आप समझ जाती।
श्रीरामकृष्ण : बाघ जैसे गप-गप करके जानवर खा डालता है, वैसे ही 'अनुराग-बाघ' काम, क्रोध इत्यादि रिपुओं को खा डालता है। ईश्वर में एक बार अनुराग हो जाने पर फिर काम-क्रोधादि नहीं रहते। गोपियों की ऐसी ही अवस्था हो गई थी - कृष्ण में अनुराग।
फिर और है 'अनुराग-अंजन'। श्रीमती कहती हैं, "सखी, चारों दिशाएँ कृष्णमय देख रही हूँ !" सखियाँ बोलीं, "सखी, 'अनुराग-अंजन' आँखों में लगा रखा है, तभी तो ऐसा देख रही हो।"
यह भी है कि मेंढक का सिर जलाकर काजल तैयार करके, उस काजल को आँखों में लगा लेने पर चारों दिशाएँ सर्पमय दिखाई देती हैं।
परन्तु जो केवल कामिनी-कांचन ही लिए रहते हैं - ईश्वर का एक बार भी विचार नहीं करते, वे बद्ध जीव हैं। उनके द्वारा क्या महत् कार्य होगा? जैसे कौवे द्वारा चोंच मारा आम देवता की सेवा में नहीं लगता, स्वयं खाने में भी सन्देह रहता है।
संसारी जीव रेशम के कीड़े जैसे हैं। इच्छा करने से काटकर बाहिर निकल सकते हैं; किन्तु स्वयं घर बनाया है, छोड़कर आते हुए माया आ जाती है। अन्त में मृत्यु।
जो मुक्तजीव हैं, वे कामिनी-कांचन के वश में नहीं हैं। कोई-कोई रेशमकीट बड़ी होशियारी से कोआ काटकर निकल आता है। किन्तु वे दो-एक ही होते हैं।
संसारी जीव माया में भूले रहते हैं। दो-एक जन को ज्ञान होता है; वे माया के जादू के भुलावे में नहीं आते; कामिनी-कांचन के वश में नहीं आते। जच्चाखाने की राख की खुली हांडी जिसके पाँव पर गिर जाती है, उस को जादूगर के डम-डम शब्द का जादू नहीं लगता। जादूगर क्या कर रहा है, वह ठीक-ठीक देख लेता है।
कोई-कोई बहुत कष्ट से खेत को सींचने का जल लाता है; ला सकने पर ही फसल होती है। किसी-किसी को जल सींचना नहीं पड़ता - वर्षा का जल भर जाता है। उसे कष्ट करके जल लाना नहीं पड़ता। इस माया के हाथ से बचने के लिए कष्ट करके साधन करना पड़ता है। कृपासिद्ध को कष्ट नहीं करना पड़ता! किन्तु वे दो-एक जन ही होते हैं।
और नित्यसिद्ध को जन्मजन्मान्तरों से ज्ञान, चैतन्य हुआ रहता है। जैसे फव्वारा बन्द रहता है। मिस्त्री ने उस फव्वारे को भी खोल दिया, और फर-फर करके जल निकलने लगा। नित्यसिद्ध के प्रथम अनुराग को जब लोग देखते हैं, तब अवाक् हो जाते हैं। कहते हैं - इतनी भक्ति, इतना वैराग्य, इतना प्रेम कहाँ पर था!
ठाकुर आगे फिर अनुराग की बातें कह रहे हैं। गोपियों के अनुराग की बात।
श्रीरामकृष्ण : गोपियों ने अक्रूर के आने के पश्चात् श्रीमती से कहा, 'राधे ! तेरा सर्वस्व धन हरण करने के लिए वह आया है !' ऐसा प्यार! भगवान के लिए ऐसी व्याकुलता!
फिर और गाना होने लगा, जिसका भावार्थ कुछ इस तरह का है....
श्री कृष्ण जब अक्रूर जी के संग वृन्दावन से मथुरा जाने के लिए रथ पर सवार हो गए, तो गोपियों ने रथ के पहिए पकड़ लिए ताकि रथ हिल न सके। तब अक्रूर जी बोले - "जिस रथ की चक्री (सुदर्शनचक्र-धारी) विष्णु हैं, जिनके चक्र (शासन, शक्ति) से जगत चलता है, उनका रथ क्या पहियों पर चलता है? अरी गोपियो, रथ को मत पकड़ो, मत पकड़ो।"
#ramakrishna #ramakrishnaparamhansa #enlightenment #liberation