🌹अगर अहंकार ज्यादा है तो हम किसीको संतुष्ट नहीं कर सकते। अहंकार होने से व्यक्ति illogical हो जाता है। अहंकारी व्यक्ति की अपेक्षा निरअहंकारी से बहुत ज्यादा होती है। 🌹जहाँ आसक्ति होती है वहाँ अपेक्षा बहुत ज्यादा होती है | 🌹अगर आप किसी से ज्यादा अपेक्षा करते हैं तो उसका मतलब है कि उसके सामने आपका अहंकार ज्यादा है | 🌹जहाँ आपका वैराग्य हों जायेगा वह चीज़ फिर आपको छोटी लगती है। वैराग्य किसी बड़े से सुख मिलने पर होगा, केवल ईश्वर से आपकी अपेक्षा होगी | बड़ी अपेक्षा से छोटी अपेक्षा चली जाती है | आपको अपेक्षा ही रखना है तो केवल भगवान से रखो | भक्त की अपेक्षा केवल भगवान से ही होती हैं | 🌹जब हम महासंसारी से साधक बनते हैं, और फिर साधक से भक्त बनते हैं, तब हम अपेक्षा केवल भगवान से रखते हैं। 🌹ज्ञानी को संसार से अपेक्षा नहीं होती क्योंकि वह अंदर से आनंद से भरा हुआ रहता है | जिसके मन में पूर्णता है उसके मन में कोई अपेक्षा नहीं होगी | 🌹अपने आप को हमेशा आगे बढ़ाना चाहिए: - संसारी -> साधक -> भक्त -> ज्ञानी 🌹भगवान आपको ऐसा कुछ नहीं करने का कहेंगे जो आप नहीं कर सकते | 🌹शुचि: - बाहरी शुद्धता होना चाहिए | 🌹मन की शुद्धता = कहीं भी भेद बुद्धि न होना 🌹जितना व्यक्ति अपने मन को बड़ा बना लेता है, उतना उसके अंदर अहमता और ममता का poison कम हो जाता है | 🌹दूसरे के अंदर बैठे हुए भगवान का तिरस्कार नहीं करना चाहिए | 🌹मन की शुचिता यह है कि हमें बाहर से किसी से सुख की जरूरत नहीं है। इसलिए you cannot do भोग unless you become dirty. 🌹कोई शुद्ध तभी रहता है जब वो भोग नहीं करता है | 🌹भोगी हमेशा मन से गंदा रहेगा उसमे शुचि नहीं रहेगी |