गइल भइसिया पानी मे || Bhojpuri Poem || Ajay Kumar ||

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Ajay Kumar

Ajay Kumar

Күн бұрын

रचनाकार जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
राजनीति कS चकरी घूमल
आग लपेटल घानी में।
गइल भंइसिया पानी में॥
बागड़ बिल्ला नेता बनिहें
करिया अक्षर बेद बखनिहें
केहु के कब्जावल माल पर
मार पालथी शान बघरिहें।
कुरसी से जब पेट भरल ना
खइलस चारा सानी में।
गइल भंइसिया पानी में॥
मचल करी ई हाहाकार
करिहें कुल उलटा ब्योपार
मरन अपहरन राहजनी पर
एहनिन के सउसे अधिकार।
जनता तभियो जै-जै बोली
छवनी छइहें रजधानी में।
गइल भंइसिया पानी में॥
नीमन जन, घर छोड़ परइहें
उनका पीछे उहवों जइहें
लूट पाट भा हेरा फेरी
ई खेला न कबों भुलइहें।
सरल कहाँ बा इनके बुझल
रेकड़ तुरिहें बैमानी में।
गइल भंइसिया पानी में॥
भूखे पेट घास के रोटी
पानी बिना गुथे ना चोटी
साले साल गरज पर करजा
नाही निभे घरे में बेटी
अब्बो ले लड़वार बनल ना
भइल छेद ओरियानी में।
गइल भंइसिया पानी में॥

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