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गौतम बुद्ध का कड़वा सच | Bitter Truth Of Goutam Buddha | SA NEWS
महात्मा गौतम बुद्ध एक पुण्यकर्मी प्राणी थे जो स्वर्ग लोक से आए थे। लोगों की आम धारणा है कि स्वर्ग प्राप्ति ही पूर्ण मोक्ष है जबकी स्वर्ग प्राप्ति तो अपने पुण्य खर्च करने का एक ज़रिया मात्र है! स्वर्ग में जो सुविधाएं उपलब्ध हैं वो यहाँ (पृथ्वीलोक) में कहां।
जो सुविधाएं पृथ्वीलोक में उपलब्ध हैं उसकी तुलना में स्वर्ग उच्च कोटी का स्थान है जहाँ आनंद भोगा जा सकता है जिन इच्छाओं का दमन पृथ्वी लोक में “तप” समझ कर किया जाता है उन्हीं इच्छाओं की पूर्ति स्वर्ग में आसानी से हो जाती है क्योंकि साधक समझता है की यही मेरा मोक्ष है और मैं अपने पृथ्वी लोक में किए तप और त्याग का लाभ /फल भोग रहा हूं जो स्थाई और अमर है! लेकिन सच तो यह है की तप और साधना से जो पुण्य कमाए थे स्वर्ग में पुण्य कर्मों का कोटा पुरा होते ही पृथ्वीलोक (मृत्युलोक) में वापस फेंक दिया जाता है। जिस तरह महात्मा गौतम बुद्ध के पुण्य खत्म होते ही उन्हें वापस पृथ्वीलोक पर आना पड़ा।
परमात्मा प्राप्ति के लिए घर त्याग देना उचित या अनुचित
स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर आने के बाद सर्व सुविधाओं का अभाव महसूस होने लगता है इसलिए आत्मा के अंदर वही सर्व सुविधाएं प्राप्त करने की कसक बनी रहती है जबकी वास्तविकता तो यह है कि यह कसक तो परमात्मा प्राप्ति कि है जो जीव को अनादि काल से ही बनी हुई है लेकिन पूर्ण भक्ति मार्ग ना मिलने से महत्वकांक्षाओं की पूर्ति में ही जीवन समाप्त हो जाता है और अगर कुछ भक्ति बनी भी तो जीव को पता भी नहीं चलता कि कब उसके पुण्य कर्म कहाँ खर्च हो गए और फिर स्वर्ग जैसे स्थान पर साधक की पुण्य कमाई समाप्त होते ही वापस पृथ्वी लोक में भेज दिया जाता है। महात्मा गौतम बुद्ध ने भी इसी कसक में घर और राज त्यागा था और बिहार राज्य में “गया” नामक शहर के बाहर एक वट वृक्ष के नीचे मनमुखी साधना शुरु कर दी थी। इसी मनमुखी साधना के कारण शास्त्र अनुकूल साधना एवं वास्तविक मोक्ष मार्ग पर ताला पड़ गया और साधक कभी भी अपने निजधाम सतलोक नहीं पहुँच पाया क्योंकि गलत मार्गदर्शन में वह भ्रमित होकर गलत भक्ति में प्रवृत्त हो गया।mahatama buddh
भुखा रहने या व्रत करने से भगवान मिल सकता है क्या?
महात्मा गौतम बुद्ध काफी समय तक निराहार बैठा रहा, हाथ पांव हिलना बंद हो गये, शरीर नर-कंकाल सरीखा हो चला और धीरे धीरे मृत्यु के निकट पहुँच गया। किसी दयावान माई ने बुद्ध के मुँह पर खीर लगा दी सोचा शायद इसके प्राण बच जाएं। बुद्ध ने वह खीर चाटनी शुरु कर दी, पहले दिन 10 -20 ग्राम, दुसरे दिन 50 -60 ग्राम, और तीसरे दिन आंख खुली तो उठकर चल पड़ा। बुद्ध को पता चला की, “भूखे रहकर साधना नहीं की जा सकती” तो अपने इस अनुभव से उसने विधान बना दिया की भूखे मरने से कल्याण संभव नहीं! तथा इसी को लोग बुद्ध की निर्वान प्राप्ति के नाम से जानते हैं। बुद्ध को ध्यान में एक रोशनी दिखाई दी जिसे आज लोग ‘डिवाइन लाइट’ कहते हैं। पर जैसे किसी खेत की सफाई करने के बाद यदि उसमे फसल नही बोई जाई तो उसमें झाड़िया उग जाती हैं उसी तरह बुद्ध अच्छी आत्मा के थे मतलब एक तरह से उनका खेत साफ था पर सही भक्ति रूपी फसल नही बीजने से उन्हें झाड़ी रूपी रोशनी दिखाई देने लगी जिसका मोक्ष मार्ग में कोई स्थान नहीं था।
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