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परंतु ऐसा मान उत्पन्न करते समय क्लेश पूर्ण अहंकार नहीं होना चाहिए, वो साधक दोष अहंकार से पराजित होता है क्लेश मान वाला नहीं है क्योंकि क्लेश घमंड वाले कभी द्वेश जैसे शत्रु के पास नहीं होते है... परित्त जननी क्लेश, द्वेश से अनेक दुख भोगना होगा... क्योकि जो भाव है घमंड है भावना से दर्गत में पतन होगा और यदि मानव जन्म मिले भी तो सुख सुविधा से वंचित रहेंगे... जो क्लेश वाला अहंकार होता है... उस समय मैं कर सकता हूं काम जो भी बहुत सारा काम कर सकता हूं ऐसी सोच होनी चाहिए लेकिन उस समय अगर घमंड उत्पन्न हो जाए कि मेरे अलावा और कोई नहीं कर सकता... तो ये क्लेश मात्र होगा... घमंड कभी उत्पन्न नहीं करना चाहिए... हिम्मत होनी चाहिए हिम्मत से काम करना चाहिए... लेकिन घमंड कभी नहीं करना चाहिए... अपने आपको नीचा रखते हुए दूसरों को मौका देना चाहिए.... वासत्व में जो दोष अहंकार पर विजय पाने के लिए मान रखता है वहीं क्लेश मान वाला है और दोष अहंकार पर विजय पाने वाला वीर पुरुष भी है... ऐसे क्लेश मान वाले बहुत शक्तिशाली अंहकार को नष्ट करके संपूर्ण जगत के अभीष्ट फल मोक्ष को उत्पन्न कर सकता है... इसलिए क्लेश के बीच रहते समय उसे हजारों उपायों से दृप्त होना चाहिए... जैसे लोम़ड़ी आदि जानवर सिंह पर आक्रमण नहीं कर सकते वैसे ही क्लेश मान से तृप्त होकर दुर्जय होना चाहिए... जैसे हम बाहरी हानि से अपने आपकी रक्षा करते है वैसे ही विभिन्न प्रकार की विपत्ति के समय क्लेश दोष से खुद की रक्षा करनी चाहिए... जो चार प्रकार के मार्ग है, चार प्रकार के मार्गों का ये मतलब नहीं की कोई बहुत बड़ी शक्ति हो, तो इसको यहां समझना चाहिए कि हमारे जो मार्ग है उसमें एक तो क्लेश मार्ग है, दूसरा हमारा स्कंद है... स्कंद के रुप में मार्ग होता है जो हमें बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए अभ्यास करने से रोकता है... जैसे हम बाहरी चीजो से अपनी आंख की रक्षा करते है वैसे किसी प्रकार की विपत्ति के समय चित्त के क्लेश दोष के आक्रमण से रक्षा करनी चाहिए... अब इस अभ्यास में निरंतर प्रसन्न पूर्वक बिना किसी तृप्ति का अनुभव किए बिना लगे रहना चाहिए... जैसे बच्चे खेल के सुख में खोए रहते है