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घन्टाघर- आज़ादी की निशानी देहरादून की ज़ुबानी | Dehradun's Clock Tower

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Peepul Tree World (Live History India)

Peepul Tree World (Live History India)

Күн бұрын

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मौजूद ये इमारत इस जगह की शान और यहाँ के स्थानीय निवासियों की पहचान मानी जाती है. घंटाघर के नाम से मशहूर ये इमारत राजपुर रोड पर व्यवसायिक इलाके चुक्कुवाला में स्थित है. देहरादून के मध्य भाग में घंटाघर से भारतीय सैन्य अकादमी से लेकर गुरुद्वारा गुरु राम राय तक देहरादून के अधिकाँश महत्वपूर्ण स्थानों का रुख किया जा सकता है.
85 मीटर लम्बे और 55 फीट ऊंचे घंटाघर पर लगे फलकों पर कई महान स्वतंत्र सेनानियों के नाम, और इसके दूसरे ओर पर भारत का संविधान अंकित है. इसके ऊपर जाने के लिये गोल घुमावदार सीढी है.
दिलचस्प बात ये है, कि समस्त एशिया में घंटाघर इकलौती ऐसी इमारत मानी जाती है , जिसका निर्माण षट्भुज आकार में हुआ है और इसका डिजाईन ग्रेको- रोमन वास्तुकला के प्रेरित है. अपने निर्माण के बाद कई वर्षों तक, घंटाघर के घड़ी की आवाज़ ही देहरादून के निवासियों को वक़्त बताती थी.
घंटाघर का मूल नाम ‘बलबीर क्लॉक टावर’ हुआ करता था, जो इस शहर के एक न्यायाधीश और जाने-माने रईस लाला बलबीर सिंह को समर्पित किया गया था. इनके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. 1936 में उनकी मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी मनभरी देवी और बेटों आनंद, हरी, अमर और शेर सिंह ने लाला बलबीर की स्मृति में एक घंटाघर ने निर्माण की अर्जी वहाँ के शहर परिषद से की थी. मगर अपने आपसी रंजिशों के चलते शहर के कई धनी लोगों को ये बात रास नहीं आई, कि किसी एक रईस आदमी पर एक घंटे घर का निर्माण हो. निर्माण करने का संघर्ष करीब दस साल तक चला, जिसमें लाला बलबीर सिंह के परिवार को भूमि के स्वामित्व और ठेकेदारों के दामों को लेकर भी कई रुकावटों का सामना करना पडा.
मगर इस संघर्ष पर विराम तब लगा, जब भारत को स्वतंत्रता मिलने के तहत, देहरादून शहर को बेहतर बनाने की फ़िराक में शहर परिषद ने आनंद और शेर सिंह को घंटाघर के निर्माण के शिलन्यास के लिए तत्कालीन उत्तर प्रदेश और मशहूर स्वतन्त्रता सेनानी सरोजिनी नायडू को राज़ी करने की हिदायत दी, ताकि घंटाघर के निर्माण में कोई अड़चन ना आए. ये तब का दौर था, जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था. फिर शहर परिषद् की मदद से दोनों भाई सरोजिनी नायडू को शिलन्यास करवाने के लिए राज़ी करने में कामयाब रहे.
1947 में भारत की स्वतंत्रता के लगभग एक साल बाद, 24 जुलाई 1948 को सरोजनी नायडू ने ’’बलबीर क्लाक टावर’’ का शिलान्यास किया, जिसका डिजाइन पहले चौकोर था, और निर्माण के दौरान, इसको षट्कोणीय करा दिया गया, और इसके लिये पूर्व में डेढ़ लाख रूपए के स्वीकृत बजट में मात्र 900 रूपये की बढ़ोत्तरी की गई. दिलचस्प बात ये है, कि इसके छह कोनों में लगीं घड़ियां स्वीटजरलेंड से लायी गई थी. इसके निर्माण के लिये लाला बलबीर सिंह के परिवार ने पच्चीस हजार रूपये दान में दिये गये.
घंटाघर पर काम, आखिरकार 1953 के मध्य में पूरा हुआ और फिर 23 अक्तूबर 1953 को तत्कालीन रेल यातायात मंत्री और भारत के होने वाले दुसरे प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसका उद्घाटन किया.
तब से घंटाघर देहरादून के विकास का साक्षी बना, जो आगे चलकर इस शहर की शान का हिस्सा बन गया. हाल-फिलहाल में इसमें कई बार नवीनकरण हुए और आज ये हर देहरादून के निवासी की पहचान है, जो यहाँ आये सैलानियों को भी मंत्रमुग्ध करता है
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Пікірлер: 4
@Kunalkapoor935.
@Kunalkapoor935. 2 жыл бұрын
🙏🏻
@Jordan2021-d1r
@Jordan2021-d1r 2 жыл бұрын
Great,,i am from Dehradun😍
@prakeshsharma624
@prakeshsharma624 Жыл бұрын
णम
@AakashChauhan-vx9pj
@AakashChauhan-vx9pj Ай бұрын
Bhai hum to pagal hena jo humare baba ke naam se log paltan bazar me itna jgha free di h
❌Разве такое возможно? #story
01:00
Кэри Найс
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а ты любишь париться?
00:41
KATYA KLON LIFE
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Dehradun ghantaghar 💜
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Lalit Srivastava
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❌Разве такое возможно? #story
01:00
Кэри Найс
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