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रक्षाबंधन और भैया दूज भाई-बहन के पवित्र प्यार के दो मुख्य त्याहार हैं । रक्षाबंधन पर बहन, भाई से अपनी रक्षा की अपेक्षा करती है और भाई दोज पर बहन, भाई की लंबी उम्र की कामना करती है। होली के दूसरे दिन क्यों मनाते हैं भाईदूज
होलिक दहन के दो दिन बाद
भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है. साल में दो बार भाई दूज पर्व मनाया जाता है.
इसे भातृ द्वितीया भी
कहते हैं. पहली कार्तिक माह में और दूसरी चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की द्वितीया
तिथि पर मनाई जाती है. होली
यानी धुलेंडी के ठीक अगले दिन
जिस तरह से दिवाली के बाद
भाई दूज मनाकर भाई की लंबी उम्र के लिए कामना की जाती है और उसे नर्क की यातनाओं
से मुक्ति दिलाने के लिए उसका तिलक किया जाता है। उसी प्रकार होली के बाद भाई का
तिलक करके होली की भाई दूज मनाई जाती है। जिससे उसे सभी प्रकार के संकटों से बचाया
जा सके। शास्त्रों के अनुसार होली के अगले दिन भाई को तिलक करने से उसे सभी प्रकार
के संकटों से मुक्ति मिलती है।
फाल्गुन मास में शुक्ल
पक्ष की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के बाद यानी अगले
दिवस होली या धुरेड़ी खेली जाती है. होली पर्व के बाद आने वाले दिन ही भाई दूज के
पर्व को मनाया जाता है. ये दिन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को आता
है. इसी दिन को हम भाई दूज या भ्रातृ द्वितीया के नाम से भी जानते हैं.
इस दिन बहनें भाईयों के स्वस्थ तथा
दीर्घायु होने की मंगलकामना करते हुए उन्हें तिलक लगाती हैं. इस दिन राहुकाल को छोड़कर किसी भी शुभ मुहूर्त में
तिलक किया जा सकता है.
इस दिन कई लोग मान्यता
अनुसार पूजा करते हैं. कई जगह पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती
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