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क्या आप सोच सकते हैं कि गुजरात में मौजूद ये जगह, करीब पांच हज़ार साल पहले, एक विशाल बंदरगाह हुआ करती थी? इतना ही नहीं, इसे भारत का पहला बंदरगाह और दुनिया के सबसे पुराने बंदरगाहों में से एक माना जाता है। अहमदाबाद से महज 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लोथल - जो एक समय हिन्दू घाटी या हड़प्पा सभ्यता का एक महत्वपूर्ण शहर था।
आज के पाकिस्तान में मौजूद हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के बारे में हर कोई जानता है, मगर दिलचस्प बात ये है कि हड़प्पा सभ्यता के कई स्थल राजस्थान और गुजरात में भी मौजूद हैं। गुजरात में फैली कई ऐसी जगहों में से एक है लोथल, जो आज एक प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल है।
'लोथल' नाम इस जगह के स्थानीय नाम से आया है, जिसका गुजराती में मतलब है 'माउंड ऑफ द डेड' या 'मृतकों का टीला'। ख़ास बात ये है कि, हड़प्पा सभ्यता का प्रसिद्ध शहर मोहनजोदड़ो का सिंधी में मतलब भी यही है।
माना जाता है कि लोथल 3,700 साल पुराना है और अब तक खोजा गया सिंधु घाटी या हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र प्रमुख बंदरगाह शहर है। यहाँ भी कई ऐसी विशेषताएं देखी जा सकती हैं जो हड़प्पा सभ्यता के कस्बों और शहरों को दुनिया में अन्य जगहों से अलग करती हैं। जैसे शहर को दो खंडों में विभाजित करना - ऊपरी शहर और निचला शहर - और उन्नत नगर योजना।
पहली बार 1954 में खोजा गया, लोथल की खुदाई 1955-1960 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एस आर राव ने की थी। उल्लेखनीय रूप से, लोथल दुनिया के सबसे पुराने डॉक में से एक माना जाता है। यहाँ कई ऐसे अवशेष मिले हैं जो ये बताते हैं कि एक समय ये एक बहुत महत्वपूर्ण और समृद्ध बंदरगाह हुआ करता था और वैश्विक व्यापार नेटवर्क का एक हिस्सा था।
आज के समय में ये भोगव नदी, साबरमती की एक सहायक नदी, के किनारे स्थित है। यहाँ मौजूद ये बेसिन और अन्य कई चीज़ें को समझ कर ये माना जाता है कि यहाँ जहाज़ बनाये जाते थे और उनकी मरम्मत भी की जाती थी। साथ ही ये जो बड़ा ईटों का टैंक है, कुछ विद्वानों का मानना है कि ये पानी जमा करने के लिए काम आता था। ये ईटों की संरचना पूरे हड़प्पा सभ्यता में सबसे बड़े ईटों के ढांचों में से एक है। इतनी सदियों बाद भी इन ईटों की सूक्ष्मता देखने लायक है।
पुरातत्वविदों ने पत्थर के लंगर या एंकर, समुद्री गोले और मुहरों के अवशेषों की भी पहचान की है। एक गोदाम के रूप में पहचाने जाने वाली एक संरचना भी यहाँ मिली है। इसके अलावा यहाँ अन्न भंडार, कार्यशालाएं, कुएं और एक गढ़ क्षेत्र या सिटाडेल के अवशेष भी हैं। ऐसा माना जाता है कि लोथल ने मिस्र, बहरीन और सुमेर तक फैले एक नेटवर्क में अपने मोतियों, रत्नों, हाथीदांत और गोले का निर्यात किया था। भारतीय पुरातत्व में पुरातात्विक कलाकृतियों के सबसे बड़े संग्रह में से एक लोथल से आता है, और अधिक आकर्षक अवशेषों में से उनके उपकरण - धातु के उपकरण, वजन, माप, मुहर, मिट्टी के बरतन - और गहने हैं।
आज इस जगह को देख कर आप सिर्फ ये कल्पना कर सकते हैं कि किस तरह से ये हड़प्पा सभ्यता के लोगों से भरा एक सफल शहर और व्यापार का एक केंद्र हुआ करता था। अगर आप गुजरात जाएँ तो हमारी सभ्यता के इतिहास की एक झलक पाने के लिए लोथल ज़रूर जाएँ।
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