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हर की पौड़ी के बारे में एक मान्यता है कि इसे राजा विक्रमादित्य ने अपनी भाई भरथरी की याद में बनवाया था. भरथरी गंगा के तट पर ध्यान करने आए थे.
एक और मान्यता के मुताबिक, यहीं पर भगवान विष्णु के पैर पड़े थे, इसलिए इसे हर की पौड़ी कहा जाने लगा.
एक किंवदंती के मुताबिक, समुद्र मंथन के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरी थीं, जिन जगहों पर अमृत की बूंदें गिरीं, वहां धार्मिक स्थल बन गए.
मान्यता है कि हर की पौड़ी में गंगा स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है.
हर की पौड़ी के सबसे पवित्र घाट को ब्रह्मकुंड कहा जाता है.
हर शाम सूर्यास्त के समय यहां गंगा आरती होती है.
हरिद्वार का सबसे प्राचीन नाम मायापुरी है.
हरिद्वार को गंगाद्वार भी कहा गया है.