Satnam Saheb Nitin Saheb Ji ke charanon mein Koti Koti Sahib Bandagi saheb
@anjalirana31573 ай бұрын
Sukriya ticher ji
@सत्संगसागर-ह8ग3 ай бұрын
‘कूप की छाया कूप के मांही ऐसा आत्म ज्ञाना।‘‘ भावार्थ है कि जैसे कूए की छाया कूए में सीमित है। उसका बाहर कोई लाभ नहीं है। इसी प्रकार यदि आत्म ज्ञान करा दिया, समाधान हुआ नहीं तो उस ज्ञान का कोई लाभ नहीं है।
@vipinkale35233 ай бұрын
तुम्हारे आतम ज्ञान ओर आसाराम बापू, श्री श्री रविशंकर, ओशो आदि गुरुओं के ज्ञान में अंतर ही क्या है ।वही ज्ञान वो झाड़ते थे आत्मा देख लो सब दुःख दूर हो जाएगा मोक्ष मिल जाएगा।
@vipinkale35233 ай бұрын
आत्म बोध का अर्थ है कि आत्मा क्या है? यानि आत्मा की जानकारी आत्मा को उसका अस्तित्व बताना यानि जीव को उसकी स्थिति, सामथ्र्य, कर्म, अकर्म का ज्ञान कराना। ऋषिजन कहते हैं कि आत्म ज्ञान हो जाने से जीव मुक्त हो जाता है। यह गलत है क्योंकि यदि किसी रोगी को किसी ने ज्ञान करा दिया कि आपको अमूक रोग है। इतना जानने से वह व्यक्ति रोगमुक्त नहीं हो गया। उसको वैद्य का ज्ञान भी कराना पड़ेगा। तब रोग समाप्त होगा। जीव को ज्ञान हो गया कि आप जन्म-मरण के रोग से ग्रस्त हैं। जब तक जन्म-मरण समाप्त नहीं होगा। तब तक जीव को परम शांति नहीं हो सकती जो गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कही है। ‘‘कूप की छाया कूप के मांही ऐसा आत्म ज्ञाना।‘‘ भावार्थ है कि जैसे कूए की छाया कूए में सीमित है। उसका बाहर कोई लाभ नहीं है। इसी प्रकार यदि आत्म ज्ञान करा दिया, समाधान हुआ नहीं तो उस ज्ञान का कोई लाभ नहीं है। इस अध्याय में परमेश्वर कबीर जी ने आत्म तथा परमात्म दोनों का ज्ञान करवाया है। आत्म और परमात्म एकै नूर जहूर। बीच में झांई कर्म की तातें कहिए