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हरियाली देवी मंदिर || उत्तराखंड का मात्र एक ऐसा मंदिर जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है ||
Hariyali Devi Temple || hariyali devi temple || @dearpahadiuk13
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हरियाली देवी मंदिर के बारे में
हरियाली देवी रुद्रप्रयाग-कर्णप्रयाग के रास्ते पर 1400 मीटर की ऊंचाई पर है, जो नगरासू से मुड़कर हरियाली देवी के सिद्धपीठ की ओर जाता है। हरियाली देवी मंदिर में क्षत्रपाल और हीत देवी की मूर्तियों के साथ शेर की पीठ पर देवी की एक मूर्ति है।
ऐसा माना जाता है कि जब महामाया देवकी की सातवीं संतान के रूप में गर्भ में आई तो कंस ने उसे भयंकर रूप से जमीन पर पटक दिया। उसका शरीर कई हिस्सों में बिखर गया जो दुनिया भर में बिखर गया। कहा जाता है कि महामाया का हाथ हरियाली कंठ पर पड़ा था ।
जन्माष्टमी और दीपावली के दौरान इस स्थान पर हजारों भक्त आते हैं। इन अवसरों पर, भक्त माँ हरियाली देवी की मूर्ति के साथ 7 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। हरियाली कांठा तक पहुंचने के लिए. मंदिर में मुख्य रूप से तीन मूर्तियाँ हैं, माँ हरियाली देवी, क्षत्रपाल और हीत देवी। हरियाली कांथा से अर्धचंद्राकार विस्तार में पर्वत श्रृंखला देखी जा सकती है। रेंज की भव्यता निश्चित रूप से किसी के भी दिल को विस्मय से भर देगी।
मंदिर सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है।
सिद्धपीठ हरियाली कांठा मंदिर
Hariyali Devi Temple Uttarakhand
दोस्तों, बचपन में होश संभालते ही सामाजिक रीति-रिवाजों के बावत जानकारी होना शुरू हुई. इन्हीं में से एक ‘भाड़’ हो जाना, इसमें यदि किसी औरत ने सांप देख लिया हो तो वह उस दिन गाय-भैंस दोहने नहीं जाती है. इसी तरह जब कोई पुरुष सांप देख लेता है तो वह उस दिन खेत में हल लगाने नहीं जाता है. खेत में हल लगाते समय यदि उसने सांप देख लिया तो वह हल लगाना बंद कर देता है. यदि हल लगाते वक्त हल के निसुड़े के फल से सांप चिर जाता है तो उसे हल के साथ बैलों को भी त्यागना पड़ता है और हीत देवता की पूजा करने पर ही वह शुद्ध होता है. पर्वतीय क्षेत्र विशेषकर गढ़वाल में अलग-अलग गांवों में खेती के सम्बन्ध में देवी-देवताओं के उद्भव (प्राकट्य) के बाद कुछ मान्यतायें निर्धारित की गयी हैं जिन्हें ‘केर’ कहते हैं.
(Hariyali Devi Temple Uttarakhand)
हरियाली कांठा देवी के विराट रूप का मंदिर है तथा जसोली स्थित मंदिर देवी के सहज रूप का मंदिर है. यह गांव के मध्य में स्थित है. आकार के हिसाब से दोनों ही मंदिर विशाल प्रतीत होते हैं. मंदिर के चारों ओर परिक्रमा के लिए काफी जगह रखी गई है. मंदिर की दाहिनी तथा बायीं ओर दो धर्मशालाओं का जीर्णोद्धार करने के बाद उन्हें आधुनिक तरीके से दो मंजिला बनाया गया है
गांव के मध्य में स्थित होने तथा सड़क की सुविधा होने से पास-पड़ोस के गांवों के अलावा देश-प्रदेश से भी दर्शनार्थी देवी के दर्शन करने के लिये आते हैं. यहाँ आने के लिये तीन दिन का खाने में परहेज करना पड़ता है, लहसुन, प्याज, अदरक, अंडा, मांस, मछली, शराब तथा घर में सूतक का न होना विराट रूप के मंदिर जैसा ही है. आदमी, औरत, बच्चे तथा बूढ़े हर प्रकार के दर्शनार्थी किसी भी दिन सुबह या शाम को दर्शन करने यहाँ आते हैं. भाद्र महीने की नवमी के दिन यहाँ मेला लगता है. इसलिये हरियाली देवी को आम लोग नौमी की हरियाली भी कहते हैं.
धनतेरस के दिन देवी को विग्रह रूप में डोली में बिठा कर गाजे-बाजों के साथ शाम को खाना खा चुकने के बाद हरियाली कांठा मंदिर के लिए विदा किया जाता है. रास्ते में कोदिमा गांव में डोली कुछ देर के लिये वहां के पदान के घर पर रूकती है. वहां से वह बगैर बाजों के जंगल के रास्ते कांठा की ओर प्रस्थान करती है.
(Hariyali Devi Temple Uttarakhand)
आधा रास्ता तय करने के बाद डोली एक समतल जगह, (बनासु) पर रुक जाती है. वहाँ पर आग जला कर पूरी रात देवी का भजन कीर्तन किया जाता है. रात के अंतिम पहर में दर्शनार्थी डोली के साथ आगे की चढाई चढ़ते हुये पंचरंगी नामक जल स्रोत पर पहुँचते हैं. वहां पर सभी लोग नित्य कर्म से निपटने के बाद देवी के विग्रह को भी स्नान कराते हैं.सुबह होते ही डोली को सूरज निकलने से पहिले कांठा मंदिर में पहुँचा दिया जाता है.
वहां समिति के कार्यकर्ता एक दिन पहिले ही पहुँच कर सभी आवश्यक काम कर लेते हैं. देवी के विग्रह को मंत्रोचार द्वारा मंदिर में स्थापित करके उसकी पूजा अर्चना की जाती है तथा उसे खीर का भोग लगाया जाता है. दर्शनार्थियों के लिये भी हलवा, सब्जी और चाय का प्रसाद तैयार किया जाता है. प्रांगण में हवन किया जाता है. सभी दर्शनार्थी देवी के दर्शन करते हैं और फिर विग्रह को डोली में रखकर लगभग 9:30 बजे वापिस जसोली स्थित मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं.
7 किलोमीटर की उतराई पार कर देवी की डोली रात की तरह कोदिमा गांव के पदान के चौक में रूकती है. कुछ देर विश्राम करने के बाद वहाँ पर गाजे-बाजों का आगमन होता है. लोग नाच-गान करते हैं. देवी की जय जयकार करके वे जसोली के लिए प्रस्थान करते हैं. लगभग 12 बजे के आस-पास डोली मंदिर प्रांगण में पहुँच जाती है. देवी के विग्रह को डोली से मंत्रोचार द्वारा मंदिर के गर्भ ग्रह में यथास्थान स्थापित किया जाता है. उसके बाद पूजा, आरती, भोग तथा प्रसाद वितरण होता है. जो दर्शनार्थी देवी के विराट रूप के मंदिर हरियाली कांठा नहीं जा सकते या फिर जिनका वहां जाना वर्जित होता है, वे यहाँ पर अपनी भेंट चढ़ाते हैं. भोजन व्यवस्था होने पर सभी लोग भोजन करते हैं और फिर अपने-अपने घरों को प्रस्थान करते हैं.
(Hariyali Devi Temple Uttarakhand)
कुछ विशेष अवसरों पर हरियाली कांठा स्थित मंदिर में
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dear pahadi uk13