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हिमालयन हाइवेज। HIMALAYAN HIGHWAYS
देवभूमि उत्तराखंड में पौराणिक मेलों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है और आज भी उत्तराखण्ड के अलग अलग हिस्सों में विशेष मौकों पर ये मेले लोकसंस्कृति की गौरवशाली परम्परा को आगे बढाते नजर आते है। स्थानीय बोलचाल में मेलों को कौथिक नाम से जाना जाता है। आधुनिकता से पहले यही कौथिक संस्कृतियों को जोड़ने, समाजों को एकजुट करने और मेलजोल के सबसे बड़े माध्यम हुआ करते थे। उत्तराखण्ड के चमोली जनपद स्थित देवाल ब्लॉक में हर साल महाशिवरात्रि को भव्य मेले का आयोजन किया जाता है और दूर दूर से श्रद्धालु यहां जलाभिषेक करने पहुंचते है। उत्तराखण्ड के गढ़वाल और कुंमाऊं की साझी लोक संस्क्रति की अनूठी विरासत यहां अभी भी नजर आती है।नमस्कार हिमालयन हाइवेज के एक ओर खास एपिसोड में आपका स्वागत है। आज हम आपके लिए लाए है चमोली जनपद के देवाल विकासखण्ड में लगने वाले ऐतिहासिक शिव मेले की तस्वीरें और लोगों का उल्लास।
अतीत की अपनी जीवनशैली को आधुनिकता के इस दौर में सहेज कर रखना काफी मुश्किल है लेकिन उत्तराखण्ड के सुदूर क्षेत्रों में आज भी समाज अपनी विरासत में मिली संस्कृति को न सिर्फ सहेज कर रखे हुए है बल्कि इसको लगातार आगे बढाने में जुटा है। कौथिक मेलों से उत्तराखण्ड का गहरा नाता रहा है और अतीत से ही कौथिक मेलों का उल्लास उत्तराखण्ड के समाज पर व्यापक असर पैदा करता रहा है। संस्कृति, समाज और रिश्तों में मेलजोल का माध्यम ये मेले आज भी लोगों को उतसाहित कर जाते है। कोविड काल मे मेलों के आयोजन पर रोक लगने के बाद इस साल चमोली जनपद में एक बार फिर मेलों का आयोजन किया गया। महाशिवरात्रि के मौके पर देवाल स्थित शिवालय में भक्तों की भीड़ इस साल भी पूरे उत्साह के साथ जलाभिषेक करने पहुंची साथ ही देवाल बाजार भी पूरे रंग में नजर आया। देवाल बाजार स्थित शिवालय का अपना इतिहास है और यहां लगने वाला शिव मेला प्राचीन मेलों में शामिल है। पिंडर नदी के किनारे स्थित देवाल में लगने वाला मेला गवाह है सामाजिक ताने बाने की मजबूत जड़ों का
दो साल बाद आयोजित हो रहे शिव मेले में आयोजको द्वारा इसे भव्य रूप देने का प्रयाश किया गया और मेले की अवधि भी तीन दिन लम्बी रखी गयी है। लोगों के मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ बाहर से आये दुकानदारों को भी दुकानें आवंटित की गई है। कोविद काल के बाद हो रहे मेले में लोगों की भीड़ से दुकानदार भी उत्साहित नजर आए। बदलते दौर में मेलों में खान पान का व्यहवार बदला हुआ नजर आया और इसका नजारा इस बार देवाल मेले में भी दिखा।देवाल मेले में हर साल दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते है साथ ही स्थानीय गांवो से भी लोगों के पहुंचने के सिलसिला सुबह से ही शुरू हो जाता है । जलाभिषेक के बाद बाजार से खरीदारी का सिलसिला शुरू होता है जो देर शाम तक जारी रहता है। बचपन से देवाल मेले में जाने वाले लोग स्वीकार करते है कि मेले का स्वरूप बदला है।
भक्ति, उल्लास और मेलजोल का माध्यम रह चुके मेले अब आधुनिकता के अनुसार स्वरूप बदल रहे है। सड़क संचार जैसी सुविधाओं के चलते मेलों के स्वरूप में यह बदलाव होना लाजिमी है। किसी दौर में भले ही यह मेले सुदूर सुविधाविहीन क्षेत्र में लोगों के मेलजोल का माध्यम थे लेकिन अब वक्त बदल चुका है। जरूरत की आवश्यक चीजें आज गांवो तक पहुंच चुकी है। धार्मिक महत्त्व ओर लोगों की आस्था ही है जो आज भी मेलों को पौराणिक स्वरूप में स्वीकार कर आगे बढ़ा रही है। देवाल मेले को लेकर स्थानीय लोगों की उत्सुकता हमेशा से ही चरम पर रहती है। मेले में जाने के कार्यक्रम न जाने कितने समय पहले से बनने शुरू होते थे। आज के दौर में देवाल भले ही दूर नही रहा लेकिन ये उल्लास ये रंग और ये खान पान आपको सिर्फ कौथिक में ही नजर आएगा।
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