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निराला जी की अमर रचना 'राम की शक्ति पूजा' प्रभु श्री राम के द्वारा शक्ति का आवाहन ही कह सकते हैं।। पर आधारित है।।
असत्य का सत्य पर भारी होना, राम का मन विचलित होना। फिर राम का उठ खड़ा होना। शक्ति का आह्वान करना।। विजय के लिए फिर नये उत्साह से चल पड़ना।।
हिंदी साहित्य प्रेमी इससे परिचित न हों। संभव नही है।।
इसलिए सीमित भूमिका रख रहा हूँ।।
आइये, उनकी पुण्य तिथि में उन्हें याद करते हुए हिन्दी साहित्य को उनके द्वारा दी गयी इस अमूल्य निधि को सुनते पढ़ते हैं।।
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प्रथम भाग में
रवि हुआ अस्त .. .. .. .. .... .... .... सजल गिरे दो मुकतादल ।
राम की शक्ति पूजा की शुरुआत राम और रावण के बीच चल रहे युद्ध से होती है।युद्ध को शब्दों में निराला जी जिस तरह प्रस्तुत करते हैं पाठक स्वयं को युद्ध भूमि में खड़ा पाता है..
निराला जी फिर कथा को आगे बढ़ाते हैं और राम की पराजय का दृश्य आता है।रावण आज के युद्ध में कुछ चमत्कारिक रूप से शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है जिससे राम और उनकी समूची सेना के अस्त्र शस्त्र कौशल राक्षसी सेना पर सब अप्रभावी हैं।
युद्ध विराम के बाद राम और उनकी हारी हुई सेना हारे मन से अपने शिविर में लौटती है ।।
यह हार राम को निराशा की ओर ले जाती है।। पत्नी सीता को न ला पाने का विचार उन्हे हताश कर रहा है और आज न जीत पाने की मुख्य वजह युद्ध भूमि में रावण की ओर से महाशक्ति का उतरना था।।जिनके कारण विजय मुश्किल हो रही थी
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