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आचार्य भरतमुनि को रस शास्त्र का प्रवर्तक आचार्य माना जाता है | इनके द्वारा रचित ‘नाट्यशास्त्र’ में रससूत्र इस प्रकार है - “विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्ति: |’’
विभाव , अनुभाव व व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है | अर्थात् इसके अनुसार विभाव , अनुभाव व व्यभिचारी भाव रस के अवयव हैं |
भरतमुनि के रससूत्र की व्याख्या - आचार्य भरतमुनि द्वारा प्रतिपादित रससूत्र की व्याख्या चार प्रमुख व्याख्याकारों द्वारा की गई है | भरतमुनि के रससूत्र में आए ‘संयोग’ एवं ‘निष्पत्ति’ शब्द की व्याख्या करने वाले ये चार आचार्य हैं -
1 भट्ट लोल्लट 2 आचार्य शंकुक
3 भट्ट नायक 4 आचार्य अभिनवगुप्त
1 भट्ट लोल्लट का उत्पत्तिवाद - ये मीमांसक हैं | इन्होंने भरतमुनि के रससूत्र के ‘निष्पत्ति’ शब्द का अर्थ ‘उत्पत्ति’ माना है, जिसके अनुसार इनके मत को ‘उत्पत्तिवाद’ कहा गया है | इन्होंने भरतमुनि के ‘संयोग’ का अर्थ ‘संबंध’ से लिया है, जो तीन प्रकार का होता है -
1 उत्पाद्य - उत्पादक संबंध - जिससे विभावों द्वारा दर्शक में रस उत्पन्न होता है |
2 गम्य - गमक संबंध - इससे अनुभावों द्वारा पात्र दर्शक के समक्ष रस को अभिव्यक्त
करता है |
3 पोष्य - पोषक संबंध - इससे व्यभिचारी भाव रस को पुष्ट करता है |
उत्पत्तिवाद की प्रमुख धारणाएँ -
1 भरतमुनि के रससूत्र में विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावों के संयोग से रसनिष्पत्ति मानी गई है | इसमें स्थायी भाव का उल्लेख नहीं है जबकि रसनिष्पत्ति का मूलाधार स्थायी भाव हैं | इस त्रुटि को दूर करने हेतु भट्ट लोल्लट ने स्पष्ट किया है कि विभावादि तत्त्वों का संयोग स्थायी भाव से होता है |
2 स्थायी भाव जब भावों, विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव से मिलकर पुष्ट होता है तभी रस की निष्पत्ति होती है |
3 भट्ट लोल्लट ने स्थायी भाव व रस में अंतर माना है |
4 भट्ट लोल्लट के अनुसार रस की निष्पत्ति (स्थिति) ऐतिहासिक पात्रों में होती है | अभिनेता, अभिनेत्री केवल उसकी अनुकृति मात्र प्रस्तुत करते हैं |
2 शंकुक का अनुमितिवाद - शंकुक नैय्यायिक हैं, जिनका रससूत्र संबंधी मत ‘अनुमितिवाद’ कहलाता है | अनुमितिवाद को अनुमान - सिद्धांत भी कहा गया है | इनके अनुसार -
निष्पत्ति का अर्थ है अनुमिति
संयोग का अर्थ है अनुमाप्य - अनुमापक (विभावादि अनुमापक और रस अनुमाप्य है)
अनुमितिवाद की प्रमुख धारणाएँ -
1 शंकुक के अनुसार विभाव ‘स्थायी भाव’ के कारण, अनुभाव कार्य तथा संचारी भाव उसके सहचारी हैं |
2 शंकुक के मत में स्थायीभाव की प्रत्यक्ष प्रतीति असंभव है | उसकी प्रतीति विभाव, अनुभाव, संचारी भाव इत्यादि के द्वारा ही संभव है |
3 चित्र - तुरंग न्याय द्वारा ज्ञान एवं धुआँ - अग्नि के उदाहरण द्वारा अनुमान की बातें शंकुक ने की हैं | नट के कुशल अभिनय को देखकर प्रेक्षक भ्रमवश नट में नायक का अनुमान कर लेता है |
3 भट्टनायक का भोगवाद - भट्टनायक सांख्यवादी हैं, जिनका भरतमुनि के रससूत्र संबंधी सिद्धांत ‘भोगवाद’ कहलाता है | इनके अनुसार -
निष्पत्ति का अर्थ है भुक्ति
संयोग का अर्थ है भोज्य - भोजक संबंध
भुक्तिवाद की प्रमुख धारणाएँ -
1 भट्टनायक के अनुसार रसनिष्पत्ति या काव्यास्वादन की तीन प्रक्रियाएँ हैं -
(क) अभिधा की प्रक्रिया
(ख) भावकत्व की प्रक्रिया (भावना)
(ग) भोजकत्व की प्रक्रिया या व्यापार
2 भट्टनायक की दृष्टि में विभावादि के साधारणीकृत होने पर सामाजिक या सहृदय में रजस, तमस का शमन होने पर सत्व गुण उत्पन्न होता है तथा सत्वस्थ हो जाने पर सामाजिक चिंता, द्वेष, ईर्ष्या इत्यादि से ऊपर उठकर स्वप्रकाशानंद का अनुभव करता है | यही भोजकत्व की अवस्था है |
4 अभिनवगुप्त का अभिव्यक्तिवाद - अभिनवगुप्त वेदांतमतानुयायी हैं, जिनका सिद्धांत अभिव्यक्तिवाद है | इनके अनुसार -
निष्पत्ति का अर्थ है अभिव्यक्ति
संयोग का अर्थ है व्यंग्य - व्यंजक संबंध
1 अभिनवगुप्त रस को व्यंजना का व्यापार मानते हैं | इनके अनुसार ‘सहृदयों के अंत:करण में कुछ भाव नित्य वासना व संस्कार रूप में विद्यमान रहते हैं |’ सहृदय में स्थित वासना रुपी स्थायी भाव जाग्रत हो जाते हैं | ये जाग्रत स्थायी भाव ही सामाजिक को रस की अनुभूति कराते हैं |
2 जैसे जल के छींटे देने से मिट्टी में व्याप्त गंध व्यक्त हो जाती है, उसी प्रकार सहृदय में वासना रूप में निरंतर विद्यमान स्थायी भाव विभावादि के संयोग से अभिव्यक्त हो जाते हैं |
3 इन्होंने ‘व्यंजना की अवधारणा’ स्थापित की है |
सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत
रससूत्र संबंधी इन चारों सिद्धांतों में से अभिनवगुप्त का सिद्धांत सर्वश्रेष्ठ है | भट्ट लोल्लट ने अनुकार्य में रस की निष्पत्ति मानी, सामाजिक को कोई स्थान नहीं दिया | शंकुक ने अनुमान के आधार पर सामाजिक में रसानुभूति की प्राप्ति बताया, जो उचित नहीं है | भट्टनायक के दो व्यापार भोजकत्व और भावकत्व शास्त्र सम्मत नहीं हैं | अभिनवगुप्त का अभिव्यक्तिवाद सामाजिक की रसानुभूति पर आधारित, रस के सहृदयनिष्ठ रूप की प्रतिष्ठा, रस के आस्वादनरूप के प्रतिपादन इत्यादि विभिन्न दृष्टियों से सर्वश्रेष्ठ है |
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