History of Jharkhand For JPSC | झारखण्ड का इतिहास | मुण्डा शासन व्यवस्था |

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झारखंड में आकर निवास करने वाले सबसे पुरानी जनजाति में मुंडा जनजाति प्राचीन है. "सोना लेकन दिसुम " अर्थात सुनहरे देश की खोज में रिसा मुंडा लगभग 22000 मुंडा ओं के साथ झारखंड की सीमा में दस्तक देकर झारखंड में ही रच बस गए। क्षेत्र में नागों की काफी अधिक प्रमुखता थी इस कारण से इसे "नाग दिसुम " अर्थात नाग देश या नागों का देश कीवी संज्ञा दी गई है। यहां के मुंडा ने जंगलों को साफ करके खुंटकट्टीदार गाँव बसाए। यह ग्रामीण अपने गांव के मालिक या राजनीतिक प्रमुख व्यक्ति या विशिष्ट व्यक्ति को "खुंटकट्टीदार" कहते थे।
झारखंड जनजाति बहुल प्रदेश है। यहां लगभग 32 जन जातियां पाई जाती है। अतः इन सभी जनजातियों की अपनी -अपनी सामाजिक अर्थ व सांस्कृतिक विशेषताएं एवं प्रशासनिक व्यवस्थाएं हैं। ये व्यवस्थाएं अतीत से वर्तमान पर चली आ रही है। इनका महत्व आज भी देखने को मिलता है जिसमें मुंडा शासन व्यवस्था का स्थान भी सर्वो प्रमुख है।
यह जनजाति कोलेरियन समूह से संबंध रखते है । इनके निवास स्थान के संबंध में विद्वानों में आपसी मतभेद है । कुछ विद्वानों ने इनका मूल स्थान तिब्बत के पक्ष में अपना मत रखा। , जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार आर्यों के दबाव के कारण ये दक्षिण - पश्चिम से मध्य प्रदेश होते हुए झारखण्ड में आकर बसे हैं । वहीं एक अन्य विचार है कि यह जनजाति दक्षिण - पूर्व से होकर झारखण्ड में आयी तथा असुरों को पराजित कर अपनी शासन व्यवस्था स्थापित की । मुण्डा स्वयं को होड़ोको तथा अपनी भाषा को होड़ो जगर कहते हैं । मुण्डा जनजाति का संबंध प्रोटो - आस्ट्रेलायड प्रजाति समूह से है ।यह जनजाति मुख्यता केवल झारखण्ड में ही पायी जाती है ।परन्तु वर्तमान में अच्छी जीविका एवं अपने प्रगति के विस्तार में ये भारत के अन्य क्षेत्रों में भी निवास करने लगे हैं। झारखण्ड में मुण्डा जनजाति का सर्वाधिक संक्रंदण राँची जिला में है ।
मुण्डाओं द्वारा निर्मित भूमि को ' खुंटकट्टी भूमि ' कहा जाता है । इनकी प्रशासनिक व्यवस्था में खुंट का आशय परिवार से है इस जनजाति का अस्तित्व केवल झारखण्ड में है । सामाजिक स्तरीकरण की दृष्टि से मुण्डा मानकी , मुण्डा, समाज ठाकुर ,बाबू भंडारी एवं पातर में विभक्त है।
मुण्डा शासन व्यवस्था को बेहतर ढंग से चलाने एवं नियंत्रित करने के लिए इस व्यवस्था से संबंधित महत्वपूर्ण पदों , संगठनों एवं संबंधित तथ्यों का विवरण निम्नलिखित है :
➡️ महत्वपूर्ण पद /
(1)मुण्डा
मुण्डा गाँव का प्रधान होता है । यह पद वंशानुगत होता है । इसका प्रमुख कार्य ग्रामीणों से लगान वसूलना , गाँव को विधि व्यवस्था बनाये रखना तथा गांवों के विवादों का निपटारा करना तथा आपसी सामंजस्य स्थापित करना होता है ।
(2)परहा / पड़हा ➡️
.यह कई गांवों (लगभग 5 से 20 )से मिलकर बनी पंचायत ( अतग्रामीण पंचायत ) को परहा / पड़हा कहा जाता है । पड़हा पंचायत का प्रमुख कार्य दो या अधिक गाँवों के बीच विवादों का निपटारा करना है । यह मुण्डा जनजाति की शासन व्यवस्था के सर्वोच्च पर अवस्थित है । इसे मुण्डा जनजाति की सर्वोच्च कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा विधायिका की संज्ञा दी जा सकती है । पहड़ा के प्रमुख अधिकारी कुंवर, लाल तथा कार्तो होते थे ।
परंपरागत मुण्डा प्रशासन में महिलाओं को को स्थान प्रदान नहीं किया जाता था ।उन्हें इनसे अलग रखा गया था।
पहड़ा पंचायत स्थल को अखड़ा कहा जाता है । यह गाँव का सांस्कृतिक केन्द्र भी होता है । . अखड़ा मानकी बहाना पाहन परहा पंचायत के प्रधान को मानकी कहा जाता है तथा यह पद वंशानुगत होता है ।
(3)➡️️हातु मुण्डा
यह ग्राम पंचायत का प्रधान होता है । मुण्डा ग्राम पंचायत को हातू कहा जाता है ।
➡(️4)️पाहन
मुण्डा गाँव का धार्मिक प्रधान पाहन कहलाता है । पाहन गाँव में शांति बनाये रखने हेतु पूजा - पाठ तथा बलि चढ़ाने का कार्य करता है । इन कार्यों के संचालन हेत पाहन को लगान मक्त भमि प्रदान की जाती हैं जिसे डाली -कटारी भूमि कहा जाता हैं।
(5)भूत - खेता *
➡️ गाँव को भूत - प्रेत के प्रकोप से बचाने हेतु पाहन द्वारा विशेष पूजा की जाती है । इस हेतु पाहन को अतिरिक्त भूमि प्रदान की जाती है जिसे भूत खेता कहा जाता है । इसकी उपज या आय से भूत - प्रेत की पूजा व्यवस्था का संचालन किया जाता है ।
(6)️पुजार / पनभरा➡
️पाहन का सहायक पुजार / पनभरा कहलाता है ।
(7)➡️पहड़ा राजा यह पहड़ा पंचायत का सर्वोच्च अधिकारी होता है।
️ इस जनजाति की शासन व्यवस्था में दीवान , ठाकुर , कोतवार , पांडे , कर्ता तथा लाल आदि नामक अधिकारी होते हैं , जो पहड़ा राजा को शासन संचालन में सहयोग प्रदान करते हैं ।
(8)मानकी ➡️परहा पंचायत के प्रधान को मानकी कहा जाता है तथा यह पद वंशानुगत होता है ।
. (9)अखड़ा➡️
पहड़ा पंचायत स्थल को अखड़ा कहा जाता है । यह गाँव का सांस्कृतिक केन्द्र भी होता है जहाँ लोग धार्मिक कार्यक्रमों व त्योहारों के अवसर पर इकट्ठा होकर सामूहिक गान व सामूहिक नृत्य करते थे।
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