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हम किसी कार्य का नियम तो लेते हैं चाहे वह प्रभु की भक्ति का हो या उनकी सेवा का हो लेकिन अपनी सुविधा के अनुसार उसे नियम का तोड़ मोड़ के पालन करते रहते हैं जब तक हमें अच्छा लगता है तब तक बिल्कुल नियम से चलते हैं और जिस दिन हमारी इच्छा होती है हमारा नियम बदल जाता है लेकिन वास्तविकता यह है की नियम नियम होता है उसका निर्वाह प्रत्येक परिस्थिति में होना चाहिए ऐसे ही एक शिव भक्त भील की कथा सुनिए