*मनु - मनवंतर ! मनु सतरूपा ! मुनि* *मनु एक नहीं 14 हैं जिनका 14 मनवंतर है, सभी मनु का अपनी अपनी स्मृति मनुस्मृति है* *जब तक मन चलायमान रहता है मलिन रहता है तब तक मनु रहता है और जब मन अपने मन रूपी दर्पण में अपना सत्य रूप देखता है तो वह मनु सतरूपा के नाम से जाना जाता है यानि उसकी भेद दृष्टि बुद्धि मिट जाती है अभेद दृष्टि हो जाती है बुद्धि की चंचलता ज्ञान का अहंकार मिट जाता है* *नारद मुनि : मैं अपने समक्ष कोई भगवान नहीं मानता हूं, मैं ईश्वर तक को श्राप देता हूं, जिनको लोग धर्मग्रंथ मानकर पूजते हैं वे सब मेरे दिमाग की उपज मेरे द्वारा रचे गए हैं, जो मेरा नहीं सुनता वह राक्षस है और जो मेरे बताए मार्ग पर चलता है वह देव है* *ब्रह्माण्डगुरु बीरेंद्र सिंह ब्रह्माण्ड पीठाधीश्वर*