Рет қаралды 827
टोडी वाला ने मुर्तिया कैसे कहा से लायी जिसका जिक्र टोडी वाला ने नहीं किया। आज समस्त जैन समाज अपनी प्राचीन मूर्तियों की नीलामी के विरुद्ध अपना आक्रोश हर क्षेत्र में दिखा रहा है और भगवन से इस नीलामी को रोकने की प्रार्थना बड़े ही सच्चे भावो द्वारा की जा रही है। हिंदुस्तान के सभी अफसरों से निवेदन करना चाहूंगा की आप सभी टोडी वाला पर अपनी नजर बनाकर रखिये ताकि ये शख्स भविष्य में ऐसी गलती दुबारा करने का प्रयास नहीं करे
#JAIN MURTIYON KI NILAMI KA NAATAK#SHOCKERS HIDDEN WITHIN ANCIENT STATUES#PRACHIN PRATIMAYE NILAMI.aapnaandaj,newstamilnadu
हां, प्राचीन मूर्तियों की नीलामी को रोका जा सकता है, यदि विभिन्न कानूनी, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक प्रतिबंधों का पालन नहीं किया जाता है। यह कुछ तरीकों से किया जा सकता है:
प्राचीन मूर्तियों को रोकने में प्रतिवृत्ति विभाग का कमजोर होने के कई कारण हो सकते हैं:
संसाधन की कमी: प्रतिवृत्ति विभाग के पास अक्सर अपर्याप्त संसाधन होते हैं, जैसे कि विशेषज्ञ कर्मचारी, वाणिज्यिक योजनाओं के लिए बजट, और प्रौद्योगिकी। इसके कारण, वे प्राचीन मूर्तियों की विधिवत निगरानी को ध्यानाकर्षण करने में कमजोर हो सकते हैं।कानूनी प्रावधानों की कमी: कई बार कानूनी नियमों और प्रावधानों की कमी होती है जो प्राचीन मूर्तियों की तस्वीरी निगरानी और उनकी निलामी को प्रभावी रूप से संचालित करने में मदद कर सकती है।
कथित संघर्ष: कई बार प्रतिवृत्ति विभाग के कर्मचारियों के बीच अंतर्निर्देशीय संघर्ष होता है, जिससे उनकी कार्य प्रणाली में कमजोरी आ सकती है।
कैप्यूलेशन की कमी: प्राचीन मूर्तियों की विविधता और संख्या के माध्यम से, उनकी निगरानी और संरक्षण को केंद्रित करने के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी होती है।इन समस्याओं के कारण, प्रतिवृत्ति विभाग कई बार प्राचीन मूर्तियों की सुरक्षा और संरक्षण में प्रभावी नहीं होता है। इसके परिणामस्वरूप, प्राचीन मूर्तियों के निगरानी, संरक्षण, और नीलामी के क्षेत्र में अधिक सावधानी और सक्रियता की आवश्यकता होती है।
भारत में प्राचीन मूर्तियों की नीलामी को नियंत्रित करने के कई कानून हैं। यहाँ कुछ मुख्य कानूनों का उल्लेख है|
भारतीय धरोहर संरक्षण अधिनियम, 1958: इस अधिनियम के तहत, भारतीय सरकार प्राचीन मूर्तियों को किसी निर्माता से निगरानी कर सकती है और उनके नीलामी को निरस्त कर सकती है।
एंटीक्विटीज़ एंड आर्कियोलॉजी एक्ट, 1972: यह अधिनियम प्राचीन और नाकाबंदी आयात की रोकथाम के लिए उत्पादों के निर्यात और प्राचीन आवासीय बंदरगाह की स्थापना के लिए प्रावधान करता है।
भारतीय पैरामाउंट अधिनियम, 1930: यह अधिनियम प्राचीन और मूल्यवान वस्तुओं की निगरानी, आदान-प्रदान, और नीलामी को व्यवस्थित करने के लिए बनाया गया है।
भारतीय संग्रह संरक्षण अधिनियम, 1950: यह अधिनियम प्राचीन और मूल्यवान वस्तुओं की संरक्षण, निगरानी, और संग्रहण को नियमित करता है।
इन कानूनों के माध्यम से, प्राचीन मूर्तियों की नीलामी और निगरानी को संचालित किया जाता है और उनका संरक्षण सुनिश्चित किया जाता है। लोगों को इन कानूनों का पालन करने के लिए सजग रहना चाहिए।
कानूनी प्रतिबंध: कई देशों में प्राचीन मूर्तियों की नीलामी पर कानूनी प्रतिबंध होता है, ताकि वे राष्ट्रीय खजाने से निकल कर बाहर नहीं जाते। इस प्रकार के कानूनों का पालन करना आवश्यक होता है।
संगठित प्रयास: स्थानीय सरकारें, सांस्कृतिक संगठन, और ऐतिहासिक संरक्षण समूह नीलामी के माध्यम से प्राचीन मूर्तियों की खरीद पर प्रतिबंध लगा सकते हैं और इसे निरस्त करने का प्रयास कर सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सहायता: कुछ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और संयुक्त राष्ट्र संगठन भी प्राचीन मूर्तियों की अवैध नीलामी के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं और नीलामी को रोक सकते हैं।जनता की जागरूकता: सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए शिक्षा, कैम्पेन, और सार्वजनिक स्थलों पर प्राचीन मूर्तियों की महत्वता और संरक्षण की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
इन तरीकों के माध्यम से, प्राचीन मूर्तियों की नीलामी को रोकने की कोशिश की जा सकती है और इन्हें संरक्षित किया जा सकता है।प्राचीन मूर्तियाँ उस समय के प्रतीक हैं जब लोगों ने पत्थर, मिट्टी, लोहा या अन्य सामग्रियों का उपयोग करके विविध रूपों में मूर्तियों की रचना की। ये मूर्तियाँ धार्मिक, सांस्कृतिक और कला संदेशों का प्रतीक होती हैं और वे प्राचीन सभ्यताओं की सोच और संस्कृति को दर्शाती हैं। ये मूर्तियाँ विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कथाओं को भी दर्शाती हैं और अक्सर उनकी विशेषताएँ उस समय की समाजिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को प्रकट करती हैं।प्राचीन मूर्तियों की मांग के कई कारण हो सकते हैं। यहाँ कुछ मुख्य कारण हैं|सांस्कृतिक महत्व: प्राचीन मूर्तियाँ अक्सर सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के प्रतीक होती हैं। लोग इन मूर्तियों को पूजा और आदर के साथ संबंधित महत्वपूर्ण धार्मिक अथवा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उपयोग के लिए खरीदना चाहते हैं।
ऐतिहासिक महत्व: प्राचीन मूर्तियाँ ऐतिहासिक और कला सांस्कृतिक के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। इनका अध्ययन और संग्रहन इतिहासकारों, विद्वानों, और कलाकारों के लिए महत्वपूर्ण होता है।कला और एस्थेटिक्स: कई लोग प्राचीन मूर्तियों को कला और एस्थेटिक्स के दृष्टिकोण से मूल्यांकन करते हैं। ये मूर्तियाँ अनुपम और अनूठे डिज़ाइन, रंग, और स्टाइल में होती हैं जो लोगों को आकर्षित करता है।
निवेश: कुछ लोग प्राचीन मूर्तियों को एक निवेश के रूप में भी देखते हैं। ये मूर्तियाँ समय के साथ मूल्य बढ़ा सकती हैं, विशेषकर यदि वे ऐतिहासिक और प्रसिद्ध हों।इन कारणों के कारण, प्राचीन मूर्तियों की मांग विभिन्न स्तरों पर बनी रहती है।
विदेशों से प्राचीन मूर्तियाँ भारत में कई तरीकों से पहुंचती हैं। यहां कुछ प्रमुख तरीके हैं: