जनसहभागी जल संसाधन प्रबन्धन-हिमालयी राज्यों हेतु विकास का एकमात्र जरिया; टीडीईटी- परियोजना पसौली

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भामृजसं संस्थान,देहरादून II ICAR-IISWC, Dehradun

भामृजसं संस्थान,देहरादून II ICAR-IISWC, Dehradun

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जनसहभागी जल संसाधन प्रबन्धन-हिमालयी राज्यों हेतु विकास का एकमात्र जरिया।
टी0डी0ई0टी0 - एम0ओ0आर0डी0 परियोजना पसौली
भारतवर्ष के कुल हिमालय क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्रफल देश के पांच राज्यों (उत्तराखण्ड,हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा एवं जम्मू कश्मीर) में फैला हुआ हैं। इन राज्यों में फैले कुल हिमालयी क्षेत्र के लगभग 12 प्रतिशत भू-भाग पर ही खेती होती है जिसका 80 प्रतिशत क्षेत्र अभी भी असिंचित हैं।
सिंचाई की बड़ी परियोजनाए जैसे वृहद आकार के तालाब व नहरें इन पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नही है क्योकि इस क्षेत्र की विषय भाॅगोलिक परिस्थतियाॅ एवं तलाकृति इनके निर्माण में धन व श्रम की अधिक आवश्यकता होती है तथा इनका अनुसक्षण व रख-रखाव भी काफी मंहगा होने के कारण इनमें स्थानीय लोगों की सहभागिता सुनिश्चित नही हो पाती हैै। जिससे इस प्रकार की परियोजनाऐं चिरस्थायी नहीं हो पाती है जिससे इस प्रकार की परियोजनाएं चिरस्थायी नहीं हो पाती हैं। इस क्षेत्र मंे जल के छोटे-बड़े पर्याप्त स्रोत हैं जिनके सही व योजनाबद्ध उपयोग से यहां के समस्त कृषि क्षेत्र को सिंचित किया जा सकता है किंतु यहाॅं पर उपलब्ध जल स्रोत उचित प्रबन्धन के अभाव में उपयोगी साबित नहीं हो पा रहे हैं। तथा निरन्तर सूखते जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में भू-क्षरण, सूखते जल स्रोत, निम्न फसल उत्पादकता एवं अलाभप्रद कृषि आदि समस्याओं के कारण पलायन जैसी गंभीर सामाजिक-आर्थिक समस्या भी गहराती जा रही हैं।
इस सभी समस्याओं के समाधान हेतु भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान देहरादून ने ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार के भू-संसाधन विभाग द्वारा विन्त पोषित एवं परियोजना उत्तर-पश्चिम हिमालय के बारानी क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा हेतु मृदा एवं जल प्रबन्धन तकनीकों के जनसहश्रभागी आंकलन एवं प्रचार का क्रियान्वयन वर्ष, 2007 में देहरादून जनपद के विकासनगर विकासखण्ड स्थिति पसौली, देवथला, गोड़रिया व डूगा खेत में करते हुये एक माडल विकसित किया गया। विकसित किये गये इस माडल को वर्तमान में देश के समस्त हिमालयी राज्यो में अपनाया जा रहा है। और इसकी लोकप्रियता में दिन प्रतिदिन वृद्वि होती जा रही है।
जन सहभागी जल संसाधन प्रबन्धन के इस माडल को विकसित करने हेतु क्रियान्वित की गई परियोजना का नियोजन सहभागी ग्रामीण समीक्षा प्रक्रिया के माध्यम से किया गया । इसका क्रियान्वयक भी स्थानीय लोगो की सहभागिता द्वारा किया गया तथा इसका रख-रखाव व अनुरक्षण स्थानीय कृषको की एक समिति जन संसाधन एवं प्रबन्धन समिति ग्राम पसौली द्वारा किया जा रहा है। विकसित किये गये माडल मे गोना नाले मे स्थित एक छोटे नाले का कैचमेंट ट्रीटमेट किया गया जिसमे मृदा व जल संरक्षण के विभिन्न यांत्रिक का वनस्पतिक उपायों खन्तीकरण चैक डैम, वृक्ष व घास रोपण आदि को अपनाते हुये किया गया । तदुपरांत इसी नाले में कट आॅफ वाल, हैडवाल एवं फिल्टर पाईय वाले एक इनलेट चैम्बर का निर्माण किया गया इनलेट चैम्बर से ग्राम के खेतो के छोर तक पानी पहुॅचाने हेतु 2 किलोमीटर लम्बाई की चार इंच की जी0 आई0 पाईप लाइन बिछाई गई जिससे स्रोत के पानी को सीमेटिड सिचाई जल टैक, जिसकी क्षमता 50,000 लीटर है, तक गरूत्वाकृर्षण बल के सहारे पहॅचाया गया । सिचाई जल टैक से कृषको के खेतो में पी0 वी0 सी0 की 1.36 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईन बिछाई गई तथा सम्पूर्ण कमान्ड क्षेत्र को सिचित करने हेतू 15 राइजर्स लगाये गये। लगाये गये राइजर्स से अंगीकृत क्षेत्र के 65 से भी अधिक कृषक लगभग 25 हैक्टर कृषि भूमि को सिचित करते हुये वर्ण दर वर्ण लाभ उठाते जा रहे है। परियोजना क्रियान्वयन से पुर्ण कृषको की यह भूमि पूर्णत्याः असिचित व अनुत्पादन थी । पूर्ण किये गये कार्य की कुल लागत रू 25,92000/ लगी जिसमे 15 प्रतिशत से अधिक का योगदान रू3,75000/ लार्भाान्वत कृषको द्वारा किया गया। इस वर्ण 2010 मे विकसित किये गये इस सिचाई तत्र का रख रखाव एवं अनुरक्षण स्थानीय कृषको को सिचाई जल उपलब्ध करने हेतु एक वारबंडी प्रणाली विकसित की गई है तथा सिचाई जल ¬प्राप्त करने वाले समस्त कृषक समिति को को रू 25/- प्रति घण्टे के हिसाब से सिचाई शुल्क जमा कराते है। सिचाई जल की बिक्री से प्राप्त हुई धनराशि द्वारा सिचार्द जल प्रबन्धन समिति सिचाई तत्र का प्रबन्धन अनुरक्षण करती है। वर्षा आधारित बारानी खेतों में सिंचाई जल उपलब्ध होने से स्थानीय कृषकों की विभिन्न फसलों की पैदावार में दोगुनी से भी अधिक की वृद्धि प्राप्त हुई है। परियोजना के द्वारा सिंचाई जल प्रबंन्धन के विकसित किये गये इस सफल माॅडल द्वारा
मक्का की उत्पादकता में 13 से 26.7 कुन्तल प्रति हेक्टेयर
अदरक फसल की उत्पादकता में 85 से 73 कुन्तल प्रति हेक्टेयर
घान फसल की उत्पादकता में 19 से 36 कुन्तल प्रति हेक्टेयर
गेंहूॅं फसल की उत्पादकता में 13 से 35 कुन्तल प्रति हेक्टेयर
तोडिया तिलहन फसल की उत्पादकता में 3 से 8 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई। कृषि उत्पादन में प्राप्त की गई इस वृद्धि के अतिरिक्त अंगीकृत गावों में सब्जी उत्पादन बागवानी, चारा उत्पादन, मशरूम उत्पादन एवं मधु मक्खी पालन जैसे ग्रामीण उद्यम भी निरंतर फल-फूल रहे है।
संक्षेप में विकसित किया गया माॅडल हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं स्थानीय लोगों के सामाजिक-आार्थिक विकास हेतु एक मील का पत्थर साबित हो रहा है।

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