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झारखंडी आदिवासी हंडिया का प्रसाद | आदिवासी सोहराय त्योहार | Adiwasi village tour|
सोहराय पर्व आदिवासी समाज के सबसे बड़े पर्व में से एक माना जाता है. पौष माह में मनाया जाने वाला सोहराय पर्व में आदिवासी समाज खेत खलिहान प्रकृति की पूजा करते हैं और खूब झूमते गाते हुए इसे मनाते हैं. 10 जनवरी से लेकर मकर संक्रांति तक 5 दिन तक सोहराय पर्व को लेकर आदिवासी संथाल समाज में काफी उत्साह रहता है.
इन 5 दिनों में आदिवासी समाज प्रकृति पूजा, खेत, खलिहान और मवेशी की पूजा करते हैं. इसके साथ ही अपने पूर्वजों की याद करते हैं. 5 दिन तक संथाल समाज में मांदर की थाप से वातावरण गुंजते रहता है और उत्साह का वातावरण बना रहता है. आदिवासी संथाल समाज में सोहराय पर्व मनाने का बड़ा ही अनोखी परंपरा है.
1.) पहले दिन स्नान करते हैं, इसे बथान कहा जाता है. शाम को पूजा करते हैं और मुर्गे की बलि देते हैं.
2.) दूसरे दिन गोहाल पूजा की जाती है.
3.) तीसरे दिन खुटाउ मानाते हैं, इसमें बैल को सजाकर बांधते हैं और उसके चारों तरफ घूमते हुए नृत्य करते हैं.
4.) चौथे दिन जाली मानते हैं जिसमें सामूहिक रूप से एक दूसरे के घर जाते हैं और नाचते हैं गाते हैं.
5.) पांचवें दिन को हाकुकटाम कहा जाता है, बताया जाता है पांचवें दिन शिकार खेलने की प्रथा है जिसमें मछली या केकड़ा का शिकार किया जाता है और फिर उसे पकाकर सामूहिक रूप से खाया जाता है.
इस तरह से 5 दिन तक मनाया जाने वाला त्यौहार आदिवासियों का सेहराय मकर संक्रांति को समाप्त हो जाता है.
इस पर्व को भाई बहन का अटूट रिश्ते का पर्व भी माना जाता है. इसमें भाई अपनी बहन को निमंत्रण देता है और बहन घर आकर सोहराय पर्व मानाती है.
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