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प्रियजन,
श्री गुरु रविदासजी दयामेहर से वचन कर रहे हैं 'जिनि जीउ दीआ सु रिजकु अंबरावै, सभ घट भीतरि हाटु चलावै' जिसने जीवन दिया है वह रोज़ी-रोटी भी देता है। घट-घट में बैठकर दुनिया को चला रहा है। नासमझी में तू जीवन को सच मानकर क्यूँ सो रहा है। जो दिन आते हैं, वो बीत जाते हैं। यहां से जाना है, रहना नहीं। दूर जाना है और मृत्यु सिर पर बैठी है। मैं मेरी, हौमें का त्यागकर उस एक दाता की बंदगी कर।
गुरु साहब आगाह कर रहे हैं कि तेरा जीवन बीत रहा है। तूने मनुष्य जीवन के ध्येय को समझकर परमार्थ की राह नहीं पकड़ी। यह दनिया नश्वर है। तू दिवाने, नादानी से चेतता क्यूँ नहीं!
🙏