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नर्मदे हर!
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मप्र के अमरकंटक में मां नर्मदा के उद्गम से परकम्मा उठाई अर्थात नर्मदा कुंड से जल जल भरा। उस जल को लेकर गया संगम तक अर्थात गुजरात के भरूच ज़िले में खम्भात की खाड़ी तक। अरब सागर की इस खाड़ी को माई के लाल रत्ना सागर कहते हैं। ठीक वैसे ही जैसे गंगा के संगम को गंगा सागर पुकारते हैं। उद्गम के जल में संगम का जल मिलाया और फिर पहुंच गया अमरकंटक। 141 दिन में 3600 किमी की परिक्रमा पूरी हुई। उसी जल का अर्पण होता है रेवा तट पर स्थित एकमात्र ज्योतिर्लिंग भगवान ओंकारेश्वर को।
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दरअसल हम सदाशिव को उद्गम के मीठे और संगम के खारे जल को अर्पित करते हुए इस अहोभाव से भरते हैं कि संसार का सुख-दुख दोनों ही तुम्हारा है। तुम अपनी संपत्ति अपने पास रखो।
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जैसे आत्मा परमात्मा स्वरूप है, उसी तरह नर्मदा शिव स्वरूपा हैं। हम अपने प्रस्थान और समापन को, जीवन और मृत्यु को, लय और प्रलय को उस परमात्मा को सौंपकर निर्भार हो जाते हैं। तेरा तुझको अर्पित कर अपनी गागर को फिर सागर भरने के लिए ख़ाली कर लेते हैं।
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जीवन और मृत्यु की परिक्रमा ऐसे अविनाशी को सौंप देते हैं, जो इस आने-जाने के फेर से मुक्त है।
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परिक्रमा का जल भोलेनाथ को सौंपकर यह प्रार्थना करते हैं कि धरती पर पानी और प्रवाह बचाए रखना। जीने के लिए ज़रूरी पानी भी आंखों के लिए ज़रूरी पानी भी। जीवन और प्रेम की धारा इसी तरह बहती रहे। मां नर्मदा की तरह जीवन के भी बहुरंगी घाट बने और बचे रहें। हमारी परम्पराओं से अपनापे की सौंधी ख़ुशबू आती रहे, संस्कृतियां चिरजीवी हों।
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जैसे मां रेवा के तट पर सभी परिक्रमावासी अपरिचित होकर आते हैं और परिचित होकर लौटते हैं। जैसे अनजाने लोग अनचीन्हे परकम्मावासियों को पाहुना बनाकर प्यार लुटाते हैं, उसी तरह इस संसार का घाट भी हो, इस संसार की परिक्रमा भी हो। नर्मदा परिवार की तरह यह जगत भी एक स्नेहिल परिवार हो।
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जीवन का जाल और जंजाल बांधे न, इसलिए यह जल स्वीकार करो महेश्वर।
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दर्शन, साहित्य और अध्यात्म की त्रिवेणी में अवगाहन करने के लिए देखते रहें हमारा चैनल ओम दर्शन (omdarshan)।
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मातु नर्मदे हर!
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