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भोपाल के क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान में महाराष्ट्र के लोक वाद्यों पर कार्यशाला संपन्न: महाराष्ट्र के 45 कलाकारों की उपस्थिति: प्रतिनिधि: क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान (एनसीईआरटी ) शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार,भोपाल के द्वारा दिनांक 17 नवंबर से 22 नवंबर के दरमियान महाराष्ट्र के लोकवाद्यों पर आधारित कार्यशाला का आयोजन किया गया था जिसमें महाराष्ट्र के 45 कलाकारों ने शानदार प्रस्तुति दी। लोक वाद्यों के संरक्षण हेतु क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान भोपाल की ओर से यह महत्वपूर्ण प्रयास किया जा रहा है।महाराष्ट्र की गौरवशाली लोक परंपराओं में से लोक वाद्यों का जतन एवं संवर्धन इस कार्यशाला के माध्यम से किया जा रहा है।लोक कलाकारों को राष्ट्रीय मंच प्रदान करने में भी इस संस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। समन्वयक डॉ.सुरेश मकवाना ने कहा कि "प्राचीन ज्ञान परंपरा एवं लोक कलाकारों लोक वाद्यों का जतन संवर्धन समय की आवश्यकता है।समय की धार में भविष्य में कहीं यह लुप्त ना हो जाए इसलिए उनका डॉक्यूमेंटेशन किया जा रहा है। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध बोली, भाषा ,लोक साहित्य के विद्वान प्रोफेसर वसंत निर्गुने जी ने मार्गदर्शन करते हुए कहा कि "प्राचीन लोक कला को लोक परंपरा को जीवित रखने का कार्य समाज के उन लोगों ने किया है जो जमीन से जुड़े है। जो समाज का निचला तबका भारत की पारंपरिक कला का जनक,पोषक और संरक्षक रहा है जो जमीन पर रहते हैं। ऐसे ही कला की संस्कृति का निर्माण हुआ है। यह लोककला की धारा हजारों वर्ष पुरानी है और इस कला परंपरा का एक दिन में निर्माण नहीं हुआ है। बल्कि इसके निर्माण में कई पीढ़ियां लगी है जो स्थानांतरित होते हुए जीवंत रूप से हमारे साथ आई है। यह एक बड़ा अवसर है कि इन श्रेष्ठ लोक कला की परंपराओं को सहज ने की चेष्टा यहां हो रही है। पिछले 2 वर्षों से बड़ी गंभीरता से मध्य प्रदेश की ओर से कला संरक्षण का प्रयास अद्वितीय है। पूर्ण भारत में ऐसा कार्य कहीं नहीं किया जा रहा है। बड़ी गंभीरता से कला,संस्कृति लोककला के संवर्धन को लेकर शोध कार्य किया जा रहा है और इसमें क्षत्रिय शिक्षा संस्थान में महाराष्ट्र के लोक वाद्य पर यह कार्यशाला एक महत्वपूर्ण घटना है। भविष्य में यह कला परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर खड़ी है। समाज की यह जड़ कहीं नष्ट ना हो जाए इसलिए यह जीवंत दस्तावेज इस माध्यम से सहेज कर रखा जा रहा है। इन लोक कलाओं का 100 वर्षों में भविष्य क्या होगा ?इस कला को लेकर इसे बचा पाने को लेकर इस प्राचीन धरोहर को इस सांस्कृतिक संपन्न लोक कला को विशाल इस देश में बचा कर रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है ।और उसे दृष्टि से पूर्ण ईमानदारी से सहेज कर रखने का दाएं पूर्ण निष्ठा और समर्पण से क्षत्रिय कार्यालय की ओर से हो रहा है ।यह एक सु:खद घटना है" ऐसा उन्होंने कहा की, डॉ रमेश बाबू ने कहा की" लोककला का विकास समूह में ही होता है और लोकवाद्य की यह श्रेष्ठ परंपरा महाराष्ट्र की पावन तथा छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमि से उपजी यहां उनका संवर्धन किया जा रहा है। लोग समूह ही जो है कला संस्कृति को बढ़ावा देता है। श्रम संस्कृति भारत में महत्वपूर्ण है और श्रम संस्कृति से ही लोकों का विकास हुआ है। मछुआरा हो या मजदूर गीत गाकर ही आनंद को प्राप्त करता है यही से इस लोक कला लोक वाद्य संस्कृति पनपती है "ऐसा उन्होंने कहा। महाराष्ट्र के लोक साहित्य बोली भाषा के विद्वान डॉ श्री कृष्णा काकड़े ने कहा कि "महाराष्ट्र एक विशालकाय प्रदेश है और वहां की इस श्रेष्ठ लोक वाद्य की परंपरा को सहेज कर रखने में इस कार्यशाला की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। महाराष्ट्र के कुछ ऐसे वाद्य की जो समय की धार में विलुप्त हो सकते हैं उनका डॉक्यूमेंटेशन यहां किया जा रहा है जिसके माध्यम से आने वाले समय में उनकी अपनी महत्व अक्षय रहेगा ऐसा उन्होंने कहा " इस कार्यशाला को आदिवासी जनजाति संग्रहालय के निदेशक डॉ धर्मेंद्र पारे ने भी भेंट दी तथा महाराष्ट्र के लोक वाद्यों पर आधारित इस कार्यशाला को बहुत ही प्रासंगिक कार्य बताया।इस अवसर पर प्रधानाचार्य डॉ जयदेव मंडल डॉ मोनिका सिंह,डॉ नितीन जी ,डॉ कन्नूलाल विटोर ,डॉ नितीन रामटेके जी, उपस्थित थे।