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बृजराज तेरी याद भुलाई नहीं जाती, ये प्रेम कहानी है सुनाई नहीं जाती
तुम मेरे मसीहा हो, करो दर्द का दरमाँ, उठी टीस कलेजे की दिखाई नहीं जाती
मैं तालिब-ए-दीदार हूँ.........
एक और भावपूर्ण संकीर्तन श्रद्धेय विनोद जी की मधुर वाणी में
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