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कवित्त एक छन्द है, जिसमें प्रत्येक चरण में ८, ८, ८ और ७ के विराम से ३१ अक्षर होते हैं. अन्त में गुरु होना चाहिए. शेष वर्णो के लिये लघु अथवा गुरु का कोई नियम नहीं है. जहाँ तक हो, सम वर्ण के शब्दों का प्रयोग करने से पाठ मधुर होता है. यदि विषम वर्ण के शब्द आएँ तो दो एक साथ रखना चाहिये. इसे 'मनहरन घनाक्षरी' भी कहते हैं।
पहले कवित्त के शब्दों में काव्य सौंदर्य देखिये. किसबी, किसान कुल में अनुप्रास अलंकार है. इसी प्रकार चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी में भी अनुप्रास का सुंदर प्रयोग है. आगे कहां-कहां अनुप्रास अलंकार है इसे आप स्वयं देखकर बच्चों को बता सकते हैं.
अब इस कवित्त का शब्दार्थ करते हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी कह रहे हैं कि मजदूर, किसान, व्यापारी, भिखारी, भाट, सेवक, नट, चोर, दूत और बाजीगर आदि सब पेट भरने के लिये ही के पढ़ते हैं, अनेक अन्य उपाय रचते हैं, पर्वतों पर चढ़ते हैं और शिकार की खोज में दुर्गम वनों में घूमते हैं. सभी लोग पेट के लिए ही अर्थात् अपनी भूख मिटाने के लिये ही ऊँचे-नीचे कर्म तथा धर्म-अधर्म करते हैं, यहाँ तक कि अपने बेटा-बेटी तक को बेच देते हैं. पेट की यह आग बड़वाग्नि से भी बड़ी है. यह आग तो केवल भगवान राम-रूप श्याम मेघ के व्दारा ही बुझाई जा सकती है.
भावार्थ में देखें तो तुलसीदास जी यहां पर गरीबों के जीवन के मर्म को दिखा रहे हैं और कह रहे हैं कि गरीब केवल अपनी भूख मिटाने के लिये ही जीवन भर प्रयत्न करते रहते हैं. कितनी मार्मिक बात कही है कि भूख मिटाने के लिये गरीब अपने बेटा-बेटी तक को बेचने से नही हिचकिचाते हैं. परन्तु राम की कृपा के बिना उनकी भूख भी नहीं मिटती है.
अगले छंद में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि समय पर बारिश न होने के कारण अकाल पड़ा हुआ है. इस कारण किसान खेती नही कर पा रहा है. स्थिति इतनी दयनीय है कि भिखारी को भीख नहीं मिल रही है, ब्राह्मण को दक्षिणा नहीं मिल रही है, व्यापारी अपना व्यापार करने में असमर्थ है और लोगों को कोई नौकरी नहीं मिल रही है. बेरोजगारी के कारण लोग दुःखी हैं. वे एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि अब कहाँ जाएं और क्या करें? गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि हमारे वेदों और पुराणों में कहा गया है और संसार देखा भी गया है, कि जब-जब संकट आया है, तब-तब श्री राम ने ही सब पर कृपा करके दुख दूर किये हैं. तुलसीदास जी राम से कह रहे हैं, कि हे दुःखियों पर कृपा करने वाले! दरिद्रता रूपी रावण ने इस दुनिया को पूरी तरह से दबाया हुआ है. दुनिया बहुत दुखी है. पाप की अग्नि में जलती हुई इस दुनिया को देखकर तुलसीदास जी के मन में हाहाकार मच हुआ है. वे प्रभु से इस दुखी संसार का उध्दार करने की प्रार्थना करते हैं.
इस कवित्त में तुलसीदास जी एक यर्थाथवादी कवि के रूप में हैं. वे गरीबों के प्रति सामाजिक न्याय की बात भी कर रहे हैं. जहां एक ओर राम चरित मानस में उन्होने राम राज की कल्पना की है, जिसमें दैहिक, दैविक, भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापता है, वहीं इस कवित्त में तुलसी के समय की भीषण गरीबी और आम लोगों में व्याप्त दुख का वर्णन किया गया है. तुलसीदास जी भगवान राम से कह रहे हें कि अब तो आप ही लोगों की इस भीषण गरीबी के कष्ट को दूर कर सकते हैं.
अब इसी पाठ में गोस्वामी की के सवैये देखिये. 22 से 26 अक्षर के चरण वाले छन्दों को सामूहिक रूप से सवैया कहने की परम्परा है. इसमे प्रत्येक छंद सामान्य छंद की लंबाई का एक चौथाई गुना होता है.
धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटी सों, बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ।
तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको, रुचै सो कहै कछु ओऊ।
माँगि कै खैबो, मसीत को सोईबो, लैबो को, एकु न दैबे को दोऊ॥
इस छंद में गोस्वामी तुलसीदास जी कह रहे हैं, कि बुरा-भला कहने वालों से उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता है. समाज उन्हें धूर्त कहे अवधूत कहे, राजपूत कहे या कपड़ा बुनने वाला जुलाहा कहे उन्हें इससे कोई फर्क नही पड़ता है. उन्हें किसी की बेटी से अपने बेटे का विवाह नही करना है और न ही किसी से रिश्ता बनाकर उसकी जाति को बिगाड़ना है. फिर वे क्यों किसी के कुछ कहने की चिंता करें. वे तो श्रीराम की भक्ति के गुलाम हैं. जिसे उनके लिये जो कहना हो वो कहे. वे तो भिक्षा मांग कर भी खा सकते है और मस्जिद में भी सो सकते हैं. उन्हें समाज और लोगों से कुछ लेना-देना नही है. वे तो राम के समर्पित भक्त हैं.
यहां पर तुलसीदास जी का एक नया ही रूप सामने आता है, जिसमें वे अपना उदाहरण देकर सभी से कह रहे हैं कि समाज और लोगों की बातों की चिंता नहीं करना चाहिये. लोग तो कुछ न कुछ कहेंगे ही.
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी व्दारा कवितावली की व्याख्या का वीडियो यूट्यूब की चैनल Centre for the Study of Developing Societies पर Creative Commons Attribution licence (reuse allowed) में उपलब्ध है - • Purushottam Agrawal, L...
अब लक्षमण मूर्च्छा और राम विलाप के प्रसंग पर चर्चा करते हैं
इस प्रसंग में तुलसी ने ईश्वर राम का मानवीकरण किया है. इसीलिये उन्होने मनुज अनुसारी शब्दों का प्रयोग किया है. अर्थात् मनुज या मानव के अनुसार. कवि कहते हैं कि उधर लंका में प्रभु श्री राम, लक्ष्मण को देखकर एक साधारण मनुष्य के समान विलाप करते हैं.
इस कविता को कैसे पढ़ायें. सर्वप्रथम तो तुलसीदास जी के विषय में कक्षा को बताइये. उनकी रचनाओं, रामचरित मानस, दोहावली, कवितावली, विनय पत्रिका आदि की चर्चा करिये. इस पाठ में दी गई रचनाओं का सस्वर पाठ कक्षा में कराइये. लक्षमण मूर्च्छा और राम विलाप के दृष्यों पर आधरित नाटिका भी कक्षा में खेली जा सकती है, जिसमें डायलॉग के स्थान पर इन चौपाइयों का उपयोग किया जाये. तुलसी के यथार्थवादी रूप पर कक्षा में चर्चा करिये. मस्जिद में सोने को लेकर तुलसी के सेकुलर रूप पर भी कक्षा में चर्चा की जाना चाहिये.