जयशंकर प्रसाद जी यह महाकाव्य मेरा सबसे प्रिय महाकाव्य है अद्भुत है कामायनी महाकवि को नमन 👏🙏
@kalyanichitrakar45649 ай бұрын
मेरी प्रिय पुस्तक, सुन्दर चर्चा, धन्यवाद सर
@vijaykumar-xt4wn10 ай бұрын
Two legend at one place
@DrDevendraChauhan8 ай бұрын
कामायनी अमूल्य धरोहर है
@RAJESHBhai95143 жыл бұрын
Thanks PB
@ramnarayansoni94766 ай бұрын
अशोक जी पूर्णतः कार्लमार्क्स और पाश्चात्य संस्कृति के पंक से सने हुए लगते हैं। इन्होंने अगर ऐसे पावन ग्रन्थ को पढ़ा भी है तो उसी भेद दृष्टि से देखा भी है। ऐसे साक्षात्कार का प्रकाशन तत्कालीन राजनैतिक परिवेष की रुग्णता ही हो सकती है।
@withthenature27446 ай бұрын
Bhai kedar ji ne ulta sidha bola hai
@arkkhan57166 ай бұрын
आप सभी को सादर नमन
@sitagurjar3782 ай бұрын
धन्यवाद
@indian59552 жыл бұрын
Bahut shandar discussion
@pramilasharma55327 ай бұрын
❤🙏
@voice_shubham2 жыл бұрын
❤️🙏
@vimalendukumartripathi33272 ай бұрын
अशोक जी! को प्राचीन साहित्य पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों से ग्रस्त प्रतीत होते हैं। जबकि जयशंकर प्रसाद की अनेक रचनाओं का उपजीव्य संस्कृत साहित्य ही रहा है। उदाहरण के लिए प्रसाद की "कामना " को ही लीजिए संस्कृत नाटक प्रबोधचन्द्रोदय का पूरा प्रभाव है।ऐसे अनेक निदर्शन हैं। "प्रत्यभिज्ञा दर्शन" का मूल क्या है?