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क्यों होता है घृत कमल अनुष्ठान
देवभूमि उत्तराखंड का यह
अनोखा धार्मिक अनुष्ठान
श्रीनगर के कलमेश्वर मंदिर में होता है।
यहां सतयुग में देवताओं व ऋषि मुनियों ने की थी भगवान शिव की साधना...
श्रीनगर। प्रसिद्ध कमलेश्वर महादेव मन्दिर में घृत कमल पूजा अनुष्ठान आयोजित हुआ। इस दिन मंदिर के महंत ने दिगम्बर लौट परिक्रमा कर भगवान कमलेश्वर को 52 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया । इसके लिए इन दिनों मंदिर परिसर कई दिनों से तैयारियां चल रही है। कमलेश्वर मंदिर में घृत कमल पूजा सतयुग से चली आ रही है। घृत कमल की पूजा भगवान शिव में काम वासना की जागृति के लिए की जाती है। दैत्यों से मुक्ति दिलाने और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए देवताओं ने कमलेश्वर महादेव में पूजा अर्चना की थी। प्राचीन काल से चली आ रही इस परम्परा को अब मन्दिर के महंत निभाते हैं। पौराणिक मान्यताओं अनुसार जब भगवान शिव माता सती की मृत्यु के बाद विरक्त को गए थे तो धरती पर ताड़कासुर नामक राक्षस का आतंक बढ़ने लगा था। तब भगवान विष्णु ने देव के महंत आशुतोष पुरी जी ने बताया कि ये पूजा अचला सप्तमी को की जाती है,
इस तरह होती है पूजा
घृत कमल पूजा भोलेनाथ का यह अनुष्ठान 6 आवरणों में की जाती है। तीन बार सांगों पांग पूजा होती है। इसके बाद शिवलिंग को चारों ओर से घी से ढका जाता है। फिर मालू के पत्ते और सफेद कम्बल इसके चारों तरफ लपेटा जाता है। धूप, पुष्प, चंदन आदि के साथ रुद्राक्ष की माला शिवलिंग को अर्पित की जाती है। भगवान को 56 भोग भी अर्पित किए जाते हैं। अंत में मंदिर के महंत शरीर पर राख लगाते हुए दिगंबर अवस्था (नग्न अवस्था) में लोटते हुए मंदिर की परिक्रमा करते हैं।
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