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कनकेश्वर महादेव । कोरबा के तात्कालिक ज़मींदारों द्वारा सन् 1857 के लगभग निर्मित अद्भुत मंदिर।
इतिहास
ऐतिहासिक दृष्टि से मंदिर अति प्राचीन है। स्वयंभू शिवलिंग के स्थापित होने का संवत अथवा ईसा सन स्पष्ट नहीं है। मंदिर का निर्माण कोरबा जमींदार परिवार ने 200 साल पहले किया था। 50 ऊंचे मंदिर का निर्माण स्थापत्य कला को दर्शाता है। जनश्रुति के अनुसार गांव के ही बैजू यादव ने शिवलिंग की खोज की थी, जिनकी 22वीं पीढ़ी वर्तमान में पूजा कर रही है।
कनकेश्वर के नाम से विराजमान हैं शिव
मंदिर में गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को कनकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। शिवलिंग का निर्माण बलुआ पत्थर से हुआ है। मान्यता के अनुसार जब शिवलिंग की जानकारी बैजू नामक चरवाहा को हुई तब उसने उक्त स्थल की खोदाई की। खोदते समय शिवलिंग का ऊपरी सिस्स टूट गया। लगातार पानी चढ़ावा के कारण टूटे स्थान से पत्थर का क्षरण हो रहा था। लिहाजा शिविलिंग में चांदी का कवच लगा दिया गया है।
मान्यता
प्राचीन मान्यता के अनुसार शिवलिंग में चावल का टुकड़ा कनकी पड़ा ही रहता था, जिसके कारण गांव का नाम कनकी पड़ा। कनकेश्वर महादेव में चावल का चढ़ावा करने से श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है। श्रद्धालु हसदेव नदी से पानी लेकर जलाभिषेक करते हैं। सावन महीने में कांवरियों का दल मंदिर पहुंचता है।
कनकेश्वर की महिमा
मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग का आकार बढ़ रहा है। आकार बढ़ने के कारण मंदिर में प्रदक्षिणा करने करने का स्थल कम हो रहा है। एक महिमा यह भी है कि यहां श्रीलंका से आने वाले साइबेरियन पक्षी जुलाई अगस्त माह में आकर मंदिर परिसर के पेड़ों में न केवल अपना घोसला बनाते हैं, बल्कि अंडे देकर प्रजनन भी करते हैं। जब पक्षी बड़े हो जाते हैं तब वापस चले जाते हैं। पक्षियों का यह झुंड केवल मंदिर परिसर में पाया जाता है। ग्रामीण इसे शुभ मानते हैं।
प्राचीन प्रतिमाओं का संग्रहण
मंदिर परिसर में प्राचीन प्रतिमाओं का अनूठा संग्रह है। मड़वारानी मंदिर के निकट ग्राम बीरतराई में खोदाई के दौरान मिले प्रतिमाओं को यहां संजो कर रखा गया है। मंदिर में एक चकरी शिवलिंग भी है, जिसे घुमाया जाता था। घिसावट आने के कारण प्रशासन ने घुमाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। मंदिर में शिवलिंग के अलावा देवी मंदिर भी निर्मित है जहां दोनों नवरात्र में ज्योति कलश प्रज्ज्वलित होता है।
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#चक्रधर महादेव
#चक्रेश्वर महादेव
#कनकी, जिला कोरबा ।
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