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लेखक: रमन द्विवेदी
भक्तों नमस्कार! प्रणाम और हार्दिक अभिनन्दन! भक्तों आज हम आपको भगवान् श्री राम की नगरी अयोध्या स्थित कनक भवन मंदिर का दर्शन करवाने जा रहे हैं, भक्तों कनकभवन का निर्माण महाराज दशरथ ने महारानी कैकेयी के आग्रह पर देवशिल्पी विश्वकर्मा से करवाया था. जिसे बाद में महारानी कैकेयी ने माता सीता को मुंह दिखाई में दे दिया था. इसीलिये कनक भवन को भगवान् राम और माता सीता का अन्तः निवास कहते हैं. मान्यता है कि कनक भवन में भगवान् राम और माता सीता आज भी विचरण करते हैं तो आइये चलते हैं कनकभवन.
मंदिर के बारे में:
भक्तों पुण्यदायिनी सरयू नदी की गोद में बसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम की नगरी अयोध्या में कई ऐसे मंदिर हैं जो जन सामान्य को भगवान राम और उनके रामराज्य की अनुभूति कराते हैं। अयोध्या के इन्हीं मंदिरों में से एक है ‘कनक भवन’। कहा जाता है कि कनक भवन महाराज दशरथ ने अपनी सबसे प्रिय महारानी कैकेयी के आग्रह पर देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जी से बनवाया था।
कनक भवन की पौराणिक कथा:
भक्तों कनक भवन से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार- त्रेता युग में जब भगवान् श्रीराम ने मिथिला में महाराज जनक की सभा में भगवान शंकर का धनुष तोड़ा और सीता जी ने उन्हें वरमाला पहना दिया। उस रात्रि भगवान् श्रीराम के मन में यह विचार आया कि मिथिला से महाराज जनक के वैभव को छोड़कर आने वाली सीता के लिए अयोध्या में एक भव्य, दिव्य और विशिष्ट भवन होना चाहिए। कथा के अनुसार - जिस क्षण भगवान राम के मन में यह विचार चल रहा था , उसी क्षण अयोध्या में महारानी कैकेयी को स्वप्न में साकेत धाम वाला दिव्य कनक भवन दिखाई पड़ा। इसके बाद महारानी कैकेयी ने महाराजा दशरथ से स्वप्न के अनुसार सुन्दर कनक भवन की प्रतिकृति अयोध्या में बनवाने का आग्रह किया। महारानी कैकेयी की इच्छा के बाद महाराज दशरथ ने देवशिल्पी विश्वकर्मा जी को बुलाकर रानी कैकेयी के कहे अनुसार एक सुंदर महल का निर्माण करवाया।
माता कैकेयी ने सीता को मुंह दिखाई में दिया कनक भवन:
कहा जाता है कि जब माता सीता अयोध्या आईं तब महारानी कैकेयी ने उन्हें कनक भवन मुंह दिखाई में दे दिया था। कालांतर में कनक भवन का निर्माण और जीर्णोद्धार कई बार होता रहा किन्तु वर्तमान कनक भवन वर्ष 1891 में ओरक्षा की रानी द्वारा बनवाया हुआ है।
अनेकों बार हो चुका है जीर्णोद्धार:
भक्तों कनक भवन के प्रांगण में स्थापित शिलालेख में समय-समय पर इसके अनेकों बार जीर्णोद्धार की जानकारियाँ वर्णित हैं।
कुश द्वारा पुनर्निर्माण:
सर्वप्रथम कनक भवन का पुनर्निर्माण भगवान राम और देवी सीता के साकेत गमन के पश्चात उनके पुत्र कुश ने करवाया था।
भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा पुनर्निर्माण:
द्वापर युग में जरासंध वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी के साथ अयोध्या आए थे। अयोध्या दर्शन के दौरान एक टीले पर मां पद्मासना को तपस्या करते देख अन्तर्यामी भगवान् श्रीकृष्ण को कनक भवन को पहचानने में किंचित देर नहीं लगी। उन्होंने अपने योगबल से न केवल विशाल कनक भवन का पुनर्निर्माण कराया अपितु श्री सीताराम जी की मूर्तियां प्रकट कर तपस्यारत माँ पद्मासना को भेंट कर दीं ।
विक्रमादित्य और समुद्रगुप्त द्वारा जीर्णोद्धार:
भक्तों कालान्तर अवंतिका पुरी के चक्रवर्ती सम्राट महाराजा विक्रमादित्य और समुद्रगुप्त द्वारा भी कनक भवन के जीर्णोद्धार का उल्लेख मिलता है।
ओरछा की महारानी वृषभानु कुंवरि द्वारा:
इसके पश्चात वर्तमान में कनक भवन का जो स्वरूप है उसका निर्माण ओरछा के राजा सवाई महेन्द्र प्रताप सिंह की धर्मपत्नी महारानी वृषभानु कुंवरि ने वर्ष 1891 में करवाया।
प्रतिष्ठित मूर्तियाँ
कनक भवन के गर्भगृह में भगवान् राम और माता सीता की तीन जोड़ी मूर्तियाँ विराजमान हैं। सबसे बड़ी मूर्तियों की जोड़ी की स्थापना ओरछा की महारानी वृषभान कुंवारी द्वारा की गई थी। इन मूर्तियों की जोड़ी के दाईं ओर कुछ कम ऊंचाई की मूर्ति स्थापित है। जिसे राजा विक्रमादित्य द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था । तीसरी सबसे छोटी मूर्तियों की जोड़ी भगवान कृष्ण द्वारा प्रकट करके तपस्यारत माँ पद्मासना को भेंट की गई थीं। श्रीकृष्ण ने पद्मासना को निर्देश देते हुए कहा था कि वह देह त्याग के समय इन मूर्तियों को भी अपने साथ समाधिस्थ कर ले क्योंकि बाद में ये स्थान पवित्र स्थान के रूप में चिन्हित किया जाएगा और कलियुग में एक महान राजा इस स्थान पर एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाएगा। कालान्तर में महाराज विक्रमादित्य ने इस मंदिर के निर्माण के लिए नींव की खुदाई करवाई तो उन्हें ये प्राचीन मूर्तियाँ मिलीं। इन मूर्तियों के बारे में कहा जाता हैं कि इनका निर्माण भगवान् श्रीराम के सुपुत्र कुश द्वारा करवाया गया था।
कनक भवन का गर्भगृह
भक्तों अयोध्या के कनक भवन मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री राम, माता सीता, भैया लक्ष्मण, भैया भरत और भैया शत्रुघ्न सहित विराजमान हैं। यहाँ विराजमान भगवान श्री राम और माता सीता के शीश स्वर्ण मुकुट सुशोभित हैं।
कनक भवन की विशेषता:
अयोध्या के कनक भवन मंदिर की प्रमुख विशेषता है कि यह मंदिर आज भी एक विशाल, सुंदर और अलौकिक महल के समान प्रतीत होता है। मंदिर का विशाल आँगन इसकी सुंदरता को अप्रतिम बना देता है। मंदिर का एक-एक कोना वैभव और संपन्नता की कहानी कहता हुआ प्रतीत होता है।
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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