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कंचना माता मंदिर (अनंतपुर गढ़) :- यह सरकाघाट उपमंडल के धर्मपुर तहसील के अंतर्गत आता है। यह स्थल भौगोलिक दृष्टि से काफी कठिन एवं विकट है। कुछ समय पहले इस स्थल तक पहुंचने के लिए एक ही मार्ग था, जो काफी संकरा एवं जोखिम भरा था। परंतु अब नए रास्ते का निर्माण किया जा चुका है जो सुरक्षित है तथा लगभग 1200 पौड़ियों के साथ बना है।अनंतपुरगढ़ के शिखर पर कंचना माता का भव्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर से चारों ओर का दृश्य बड़ा ही मनमोहक लगता है। यहां पहुंचकर लगता है जैसे आकाश धरती से थोड़ा दूर रह गया हो। हरे भरे जंगल के बीच ठंडी हवा में मंदिर तक पहुंचने का मजा ही कुछ और है। चीड़ की पत्तियों की सरसराहट और पक्षियों की चहचहाहट मंत्रमुग्ध कर देती है। नीचे हरी-भरी वादियां, कतारों में पसरे गांव का नजारा बड़ा लुभावना लगता है। चारों ओर का बिहगम दृश्य यहां से देखते ही बनता है। मान्यता है कि यहां आकर मन की मुरादें पूरी हो जाती हैं। मन्नत पूरी होने पर लोग यहां भव्य जातरों का आयोजन माता के दरबार में करते हैं। नवरात्रों में यहां उत्सव जैसा माहौल होता है और सभी नवरात्रों के दिन भंडारे का आयोजन किया जाता है तथा दूर-दूर से लोग माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
अनंतपुर दुर्ग में राणाओं के आधिपत्य के इतिहास का वर्णन मिलता है। पर कालांतर में मंडी रियासत के तत्कालीन राजा (1637-1664) सूरज सेन ने धोखा देकर यहां के राणा को मरवाकर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। जब सूरज सेन कांगड़ा व कुल्लू आदि के राजाओं पर अपने राज्य के विस्तार करने पर असफल रहा तब उसने छोटे-छोटे ठाकुरों व राणाओं के राज्यों पर आक्रमण करने शुरू किए, लेकिन उस समय वह अनंतपुरगढ पर विजय पाने में असमर्थ रहा था।
राजा सूरजसेन का लोकप्रिय वजीर था ' जालपू '। राजा ने जालपू के साथ एक गुप्त समझौता किया और अनंतपुरगढ़ प्राप्त करने का एक षड्यंत्र रचा। राजा ने अपने वजीर को सबके सामने अपने राज्य से निकाल दिया। जालपू मंडी छोडकर अनंतपुरगढ़ के राणा की शरण में आ गया और अपने देश निकाले की कहानी राणा को सुनाई। राणा को जालपू की बातों पर विश्वास हो गया और उसने उसे अपने पास नौकर रख लिया। जब जालपू ने राणा व रानी को अपने विश्वास में ले लिया तो रानी ने उसे अपना भाई बना लिया। एक दिन जालपू ने रानी को बताया कि वह अपने परिवार की सभी महिलाओं को कंचना माता के दर्शन के लिए लाना चाहता है, लेकिन उसने उन्हें यहां लाने की शर्त उनको डोली में बिठाकर लाने की रानी के समक्ष रखी, जिन्हें सैनिक बेरोक टोक माता के दर्शन के लिए जाने दें। रानी ने जालपू वजीर की बात मान ली। जालपू अपने राजा के पास मंडी पहुंचा और उन्हें अपनी सारी योजना बता दी। राजा ने पालकियां तैयार करवाकर उनमें युद्ध की सारी सामग्री भरकर दस-दस चुनिंदे वीर पालकियों को उठाने में लगाकर अपने प्रिय बजीर जालपू को विदा कर दिया। जालपू पालकियों के साथ अनंतपुर गढ़ पहुंचा। द्वार पर उन पालकियों को किसी ने भी नहीं रोका और सीधे माता के मंदिर में पहुंचा दी । राणा और रानी जालपू के षड्यंत्र को नहीं समझ सके।अत: जालपू ने अपने सैनिकों को राणा के विशेष ठिकानों पर आक्रमण करने का हुक्म दे दिया। राणा समेत अनेक सैनिक मारे गए और जालपू ने अनंतपुरगढ़ पर कब्जा कर लिया। रानी अपने पति के साथ सती हो गई। सती होने से पहले रानी ने जालपू को विश्वासघात करने पर उसका वंश समाप्त होने का अभिशाप दे दिया।
अनंतपुर किले व कंचना माता के मंदिर तक पहुंचने के लिए घरभासड़ा गांव से सीधी चढ़ाई चढकर व दूसरा रास्ता टीहरा से टिक्कर होते हुए एक घंटे का सफर तय करके पहंचा जा सकता है। इस दुर्ग के ऊपरी भाग में जहां राजा के महल थे, उनकी नींव के पत्थर, दुर्ग के दोनों तरफ मुख्यमार्ग में बनी सैनिक चौकियों के टूटे-फूटे अवशेष, पानी के बड़े बड़े तालाब आज भी विद्यमान हैं।
Google map location: goo.gl/maps/T6...
Way to temple:
1. From Awahdevi via Tihra & Darwar: Awahdevi to Gharwsda by vehicle, then 3-4 Km trek.
2. From Awahdevi via Tihra & Tikkar: Awahdevi to Tikkar by vehicle, then 5-6 Km trek
3. From Sarkaghat to Gharwasda by vehicle, then 3-4 Km trek.
Trek Difficulty level: Medium