Рет қаралды 10,321
कौन थे महाज्ञानी ऋषि याज्ञवल्क्य जानिए उनके विषय में सबकुछ | Yagyavalkya | Hindu Rituals | Religion
क्य़ा आप जानते हैं, ऋषि याज्ञवल्क्य कौन थे, किसके श्राप से उन्होंने धरती पर जन्म लिया और वो किसके अवता थे, यदि नही जानते तो आज के इस वीडियो को पूरा देखिए और जानिए, महाज्ञानी ऋषि याज्ञवल्क्य के बारे में।
पुराणों में विष्णु और शिव के अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन भारत के वैदिक काल के एक ऋषि और दार्शनिक हुए थे, याज्ञवल्क्य, जिन्हें ब्रह्मा का अवतार माना जाता है, याज्ञवल्क्य को अपने काल का सर्वोपरि वैदिक ज्ञाता माना गया है, याज्ञवल्क्य ने शतपथ ब्राह्मण की रचना की, शास्त्रार्थ और दर्शन की परंपरा में भी इनसे पहले किसी ऋषि का नाम नहीं लिया जा सकता, इन्हें नेति नेति (यही नहीं यह भी नहीं) के व्यवहार का प्रवर्तक कहा जाता है, वशिष्ठ कुल के गोत्रकार, जिनको यज्ञदत्त के नाम से जानते हैं, विष्णु पुराण में इन्हें ब्रह्मा, रात का पुत्र, और वैशम्यपान का शिष्य कहा गया है, इसके अलावा प्रत्यक्ष रूप से सूर्य देव से भी, इन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था, राजा जनक के काल में ऋषि याज्ञवल्क्य महान ऋषि थे। याज्ञवल्क्य जी का दर्शन, आत्मा का दर्शन माना जाता है, वह एक श्रेष्ठ दार्शनिक थे, याज्ञवल्क्य के नाम से एक स्मृति ग्रंथ भी है, उनका यह कथन जिस क्षण, मन में वैराग्य उत्पन्न हो जाए, तभी संन्यास लिया जा सकता है, ये आज भी संन्यास का मूल आधार माना जाता है
इनके जन्म को लेकर प्रचलित, पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी द्वारा यज्ञ में अपनी पत्नी सावित्री की जगह, गायत्री को स्थान देने पर, सावित्री ने उन्हें मानव रूप में जन्म लेने का श्राप दिया, इस श्राप के कारण ही, इनका जन्म फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को, चारण ऋषि के यहां मनुष्य के रूप में हुआ। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, यह देवरात के पुत्र थे, परम विदुषी मैत्रेयी और कात्यायनी, ऋषि याज्ञवल्क्य की ही पत्नी थी। कात्यायनी घर चलाती थीं और मैत्रेयी को पति से साथ बैठककर, उनका शिष्यो को ज्ञान देना ज्यादा पसंद था। मात्र सात वर्ष की अल्पायु में ही, इन्होंने वेदों की सारी रचनाओं को कंठस्थ कर लिया था, ऋषि याज्ञवल्क्य ने उद्वालक आरुणि ऋषि से अध्यात्म, ऋषि हिरण्यनाम से योग शास्त्र की शिक्षा ग्रहण की, ऋग्वेद का विशेष अध्ययन इन्होंने गुरु शाकल्य के आश्रम में जाकर किया। एक बार इनका अपने गुरु से विवाद हो गया, गुरु वैशंपायन ने क्रोधित होकर, इन्हें शिष्य पद से हटा दिया, और उन्हें अपने द्वारा दिया गया ज्ञान भी लौटाने को कहा, गुरु के निर्णय को स्वीकार करते हुए याज्ञवल्क्य ने उन्हें सारा ज्ञान लौटा दिया, उस ज्ञान को गुरु के अन्य शिष्यों ने, तीतर पक्षी के रूप में ग्रहण कर लिया, शिष्य द्वारा तीतर पक्षी के रूप में ग्रहण किए जाने के कारण, यजुर्वेद की यह शाखा तैत्तिरीय संहिता के नाम से जानी गई। इस घटना के पश्चात ज्ञान से रहित हो जाने के कारण, ऋषि याज्ञवल्क्य ने, ज्ञान की प्राप्ति के लिए, सूर्य भगवान की उपासना की, सूर्य ने अश्व रूप धारण कर, उन्हें यजुर्वेद के उन मंत्रों की दीक्षा दी, जिसका ज्ञान अभी तक किसी को नहीं था, अश्वरूप में सूर्य से ज्ञान प्राप्त होने के कारण, शुक्ल यजुर्वेद की एक शाखा, वाजसनेयि माध्यन्दिन संहिता, और दूसरी काण्व संहिता के नाम से जानी जाती है, शुक्ल यजुर्वेद संहिता के मुख्यमंत्र दृष्टा महर्षि याज्ञवल्क्य ही हैं, इस संहिता में चालीस अध्याय हैं, सभी पूजा आदि धार्मिक अनुष्ठानों संस्कारों में, इनके मंत्रों का प्रयोग होता है, रुद्राष्टाध्यायी भी इसी संहिता में है, इनका दूसरा महत्वपूर्ण ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण है, बृहदारण्यक के उपनिषद इसी का भाग हैं, वहीं, निषाद, राजा जनक के दरबार में याज्ञवल्क्य और गार्गी के बीच हुए संवाद पर आधारित है, इनकी परी कथा भी सुनिए, जनक के काल में ही गर्ग वंश में वचक्नु नामक महर्षि की पुत्री वाचकन्वी गार्गी हुईं, जिनकी ऋषि याज्ञवल्क्य से जनक की सभा में, ब्रह्म ज्ञान पर चर्चा हुई, ऐसा कहा जाता है कि राजा जनक प्रतिवर्ष शास्त्रार्थ करवाते थे, एक बार के आयोजन में याज्ञवल्क्य को भी निमंत्रण मिला, जनक ने शास्त्रार्थ प्रतियोगिता के लिए के लिए, सोने की मोहरे जड़ी, 1000 गायों को दान में देने की घोषणा कर रखी थी, उन्होंने कहा था कि शास्त्र के लिए जो भी पधारे, उनमें से जो भी श्रेष्ठ ज्ञानी विजेता बनेगा, वह इन गायों को ले जा सकता है, ऐसी स्थिति में ऋषि याज्ञवल्क्य ने अति आत्मविश्वास से भर के, अपने शिष्यों से कहा कि गायो को हमारे आश्रम की ओर ले चलो, इतना सुनते ही सब ऋषि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने लगे, सभी के प्रश्नों का ऋषि ने उत्तर भी दिया, राजा जनक की सभा में ब्रह्मवादिनी गार्गी को भी बुलाया गया, सब के बाद याज्ञवल्क्य जी से शास्त्रार्थ करने के लिए वे उठी, दोनों के बीच जो शास्त्रार्थ हुआ, गार्गी ने याज्ञवल्क्य जी से कई प्रश्न किए, बृहदारण्यक उपनिषद, दोनों के बीच हुए संवाद पर ही आधारित है। जब याज्ञवल्क्य ऋषि को जो वैराग्य प्राप्त हुआ, तो उन्होंने घर बाहर त्यागने की सोची, उन्होंने अपनी पत्नी मैत्रेयी से कहा कि, मैं तुम्हारे और कात्यायनी के बीच घर का बंटवारा करना चाहता हूं. मैत्रेयी ने कहा कि बंटवारे का सामान लेकर मैं क्या करूंगी, यह सब तो नष्ट होने वाला है, तब ऋषि याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी को ब्रह्म ज्ञान दिया, और वो भी संन्यासी हो गई।
#religion #religious #mythology