माननीया शशिपाधा जी की कविता प्रवासी वेदना...... मेरे बिन आंगन की तुलसी तो कुम्हलाई होगी , मेरे घर से प्यारी बदली क्या संदेशे लाई.........प्रवासी जीवन यादो का समुच्च है कोई महासागरो के पार है कोई नदियों के उस पार पीढ़ाएं सभी की एक समान है मात्राए ज्यादा कम है अच्छा पढ़ा है शुभ्रा जी धन्यवाद अभिनंदन सादर प्रणाम