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मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में
यह रहेगी जैसे पेड़ के तने में
रहते हैं दीमक
जैसे दाने में रह लेता है घुन
यह रहेगी प्रलय के बाद भी मेरे अंदर
यदि और कहीं नहीं तो मेरी जबान
और मेरी नश्वरता में
यह रहेगी
और एक सुबह मैं उठूंगा
मैं उठूंगा पृथ्वी-समेत
जल और कच्छप-समेत मैं उठूंगा
मैं उठूंगा और चल दूंगा उससे मिलने
जिससे वादा है
कि मिलूंगा....यह प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि केदारनाथ सिंह की एक कविता है. आज केदारनाथ सिंह की जयंती है. उनकी कविताओं का कोई सानी नहीं है. हिंदी और कविता को जीने वाले सच्चे कवि केदारनाथ सिंह का योगदान अविस्मरणीय है. वह अज्ञेय द्वारा संपादित तारसप्तक के कवि थे. अभी बिल्कुल अभी, ज़मीन पक रही है, यहाँ से देखो, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ, बाघ, तालस्ताय और साइकिल जैसे रचना संकलनों के कवि केदारनाथ सिंह को साहित्य अकादमी, भारतीय ज्ञानपीठ और व्यास सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. केदारनाथ सिंह की जयंती पर साहित्य तक पर सुनिए आजतक.इन के कार्यकारी संपादक पाणिनी आनंद द्वारा पढ़ी गयी उनकी ये अद्भुत कविताएं.
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