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How creation happens? Vishnu is origin of Krishna or Krishna is origin of Vishnu?
सृष्टि कैसे होती है? कृष्ण विष्णु के अंश हैं या विष्णु कृष्ण के अंश हैं? कृष्ण बड़े या विष्णु?
रामादि मूर्तिषु कला नियमेन तिष्ठन्
नाना अवतार अकरोत् भुवनेषु किन्तु |
कृष्णः स्वयं समभवत् परमः पुमान् यो
गोविन्दम् आदि पुरुषं तमहं भजामि ॥ Brahma Samhita 5.39॥
श्री ब्रह्मा जी कहते हैं की हम उन गोविंद को प्रणाम करते है जो स्वयं कृष्ण रूप में और राम, नृसिंह, वराह आदि अपने अंश अवतारों में प्रकट होते हैं।
अद्वैतम् अच्यतुम् अनादिम् अनंत रूपं
आद्यं पुराण पुरुषं नव यौवनं च ।
वेदेषु दुर्लभम् अदुर्लभम् आत्म भक्तौ
गोविन्दम् आदि पुरुषं तमहं भजामि ॥ Brahma samhita 5.33 ॥
हम उन गोविंद को प्रणाम करते हैं जो अद्वय हैं, अनंत रूपों को धारण करने वाले हैं, ये सभी रूप नित्य हैं अच्युत हैं, वेदों में भी जो कृष्ण का नवयौवन रूप दुर्लभ है वह केवल प्रेमी भक्तों के लिए ही सुलभ है।
दीप अर्च्चिः एव हि दशा अन्तर अभ्युपेत्य
दीपायते विवृत हेतु समान धर्मा |
यः तादृग एव हि च विष्णुतया विभाति
गोविन्दम् आदि पुरुषं तमहं भजामि ॥ Brahma Samhita 5.46॥
जिस तरीके से एक दीपक से अनंत दीपक प्रज्वलित होते है, उन सभी दीपकों में समान तेज होते हुए भी एक दीपक आदि है, उसी तरह गोविंद से अनेकों विष्णु मूर्तियाँ प्रकाशित होती है। अतः मैं उन आदि पुरुष गोविंद को प्रणाम करता हूँ।
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IMPORTANT
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यस्य एक निश्वशित् कालम् अथ अवलम्ब्य
जीवन्ति लोम बिलजा जगन्दण्ड् नाथाः |
विष्णुः महान् स इह यस्य कला विशेषो ##
गोविन्दम् आदि पुरुषं तमहं भजामि ॥ Brahma Samhita 5.48॥
Brahmā and other lords of the mundane worlds, appearing from the pores of hair of Mahā-Viṣṇu, remain alive as long as the duration of one exhalation of the latter [Mahā-Viṣṇu]. I adore the primeval Lord Govinda of whose subjective personality Mahā-Viṣṇu is the portion of portion. जिन महा विष्णु के रोम छिद्रों से ब्रह्मा और अनंत कोटि ब्रह्मांड निकलते हैं, वे महा विष्णु श्री गोविंद के अंश के भी अंश हैं।
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ध्यान देने की बात ये है की ये सभी विष्णु मूर्तियां नित्य हैं। जयदेव गोस्वामी कृत दशावतार स्तोत्र जो पुरी में जगनाथ भगवान को अति प्रिय है, उसमे कहा गया है... "केशव धृत दश विध रूप, जय जगदीश हरे" श्री केशव ने ये मुख्य दस अवतार रूप धारण किये हैं।
भक्तों का भगवान के किसी एक रूप में आकर्षण होता है अतः उनके भाव के अनुसार भगवान उसी रूप में उन्हें दर्शन देते हैं। जैसे ध्रुव को विष्णु रूप में, प्रह्लाद को नृसिंह रूप में, हनुमान को राम रूप में और अर्जुन ने तो विराट रूप/चतुर्भुज रूप / कृष्ण रूप में से अपनी मति कृष्ण में ही सदा लगा के रखी। गीता का अध्याय 11 इसका प्रमाण है। 11.49-55
श्री कृष्ण ने अनेक असुरों को प्रेम देकर भगवत धाम भेजा। विष्णु रूपों द्वारा संहार होने पर भी उनके चित्त की शुद्धि पूर्ण रूप से नहीं हुई। जैसे रावण/कुम्भकरण, हिरण्याक्ष/हिरण्यकशिपु, अंत में शिशुपाल/दंतवक्र श्री कृष्ण के हाथों हत होने पर ही भगवत धाम जाने के काबिल हुए।
लीला माधुरी की बात की जाए तो यशोदा ने श्री कृष्ण को अपने प्रेम की डोर से ऊखल से बांध कर एक जगह खड़ा कर दिया। क्या कभी किसी और विष्णु रूप में भगवान प्रेम के बंधन में इतना बंधे हैं? इससे सिद्ध होता है की श्री कृष्ण सम्पूर्ण रसों, प्रेम माधुर्य, रूप माधुर्य, वेणु माधुरी, परिकरों के वैशिष्ट्य के आगार हैं। वे ही समस्त विष्णु मूर्तियों के स्त्रोत और आदि पुरुष हैं। परंतु तब भी भक्तों की आसक्ति किसी एक रूप में ही होती है, ये स्वाभाविक है।
श्री कृष्ण का तत्त्व समझने के बाद अब बलराम जी का तत्त्व समझने का प्रयास करेंगे
श्रीमद भागवतम 10.2.5
saptamo vaiṣṇavaṁ dhāma
yam anantaṁ pracakṣate
garbho babhūva devakyā
harṣa-śoka-vivardhanaḥ
After Kaṁsa, the son of Ugrasena, killed the six sons of Devakī, a plenary portion of Kṛṣṇa entered her womb as her seventh child, arousing her pleasure and her lamentation. That plenary portion is celebrated by great sages as Ananta.
देवकी के सप्तम गर्भ में श्री कृष्ण के अंश प्रकट हुए।
श्री चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.5.4
sarva-avatārī kṛṣṇa svayaṁ bhagavān
tāṅhāra dvitīya deha śrī-balarāma
श्री कृष्ण स्वयं भगवान हैं और सभी अवतारों के मूल स्त्रोत है। श्री बलराम उनके द्वितीय देह है। अर्थात उनके प्रथम प्रकाश विग्रह हैं।
श्री चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.5.7
saṅkarṣaṇaḥ kāraṇa-toya-śāyī
garbhoda-śāyī ca payobdhi-śāyī
śeṣaś ca yasyāmśa-kalāḥ sa nityā-
nandākhya-rāmaḥ śaraṇaṁ mamāstu
श्री नित्यानंद बलराम मेरे चिंतन के विषय बनें। संकर्षण, अनंत शेष नाग, महा विष्णु, गर्बोधक शाई विष्णु और क्षीरोदक शाई विष्णु भी जिनके अंश या अंश के अंश कला रूप हैं।
प्रस्तुत उत्तर श्री चैतन्य महाप्रभु के मार्गदर्शन में लिखा गया है। श्री चैतन्य ब्रह्म सम्प्रदाय में अवतरित हुए, जो की वेद व्यास के द्वारा प्रमाणित 4 सम्प्रदायों में से एक है। अतः प्रामाणिक ग्रंथ जैसे ब्रह्म संहिता, भागवत पुराण, भगवत गीता, चैतन्य चरितामृत में से ही इन तथ्यों को उद्धृत किया गया है।
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