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“...हेरी बीरी क्याहें तै न्यौतूँ मेरी माँ का जाया जिस तै मैं ... “...हेरी बीरी क्याहें तै न्यौतूँ....”
“लोक गीतों में हरियाणवी संस्कृति” के इस अंक के दूसरे भाग में हम चर्चा कर रहे हैं विवाह संस्कार के गीतों में भात और विदाई के गीतों पर। जी हाँ! आप जानते ही हैं कि हरियाणवी संस्कृति में जीवन के हर संस्कार को लोकगीतों के माध्यम से पिरोया गया है।
तो आइये लाठर की चौपाल के इस अंक के दूसरे भाग में हम हरियाणा के मशहूर संगीतकार कैलाश चंद्र वर्मा जी से चर्चा करते हैं विवाह संस्कार के लोकगीतों पर.... ...
विवाह संस्कार के लोकगीतों पर चर्चा इस अंक में समाप्त होती है। हरियाणवी संस्कृति को जानने के लिए आगे भी जरूर देखें हरियाणा के मशहूर संगीतकार कैलाश चंद्र वर्मा जी के साथ “लोक गीतों में हरियाणवी संस्कृति” पर परिचर्चा के अगले अंक ....