खयाले कर्बला है और मैं हूं बहिश्ते जां फिजां है और मै हूं न पहुंचा कर्बला में क्यों दमे हश्र ये वक्ते ना रसा है और मैं हूं मिर्जा आज शब्बीर पे क्या आलम ए तन्हाई है जुल्म की चांद पे जहरा की घटा छाई है उस तरफ लश्करे आदाम ए सफआराई है यां न बेटा न भतीजा न कोई भाई है बरछियां खाते चले जाते हैं तलवारों में मार लो प्यासे को है शोर सितमगारों में