वाह... बहुत ही सुन्दर रचना है प्रीतराज जी की और कृष्णकांत जी का बेहतरीन संगीत और केशव जी की अमृतमयी आवाज... जैसे त्रिवेणी संगम में कुंभ का स्नान हो रहा हो,...बस सहज आंखें बंद हो जाती है, और जैसे लक्ष्मी नाथ जी के निज मन्दिर में नगर सेठ के स्वरूप के दर्शन हो रहे हैं!