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पारम्परिक सिरमौरी लोक गीत
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भावानुवाद :इस लोकगीत में प्रेयसी अपने प्रेमी से मिलने के लिए आतुर है परंतु दोनों प्रेमियों के गांव के मध्य एक प्राकृतिक टिला (पहाड़ी ) है जिसके कारण एक दूसरे का गांव दिखाई नहीं देता ।
ऐ सामने वाले टीले! तुम न होते तो वहां समतल मैदान होता। मैं अपने साजन का गांव देख अपने मन को बहला पाती परन्तु मेरे भाग्य में ऐसा कहां ?
तुम्हारे मिलन की प्रतीक्षा में अब सूर्यास्त का समय हो चला। बस! तुम्हें मिलने मात्र की इच्छा से सारा दिन एक-एक पल निहारती रही।
पानी की बावड़ी के समीप बैठी तुम्हारी प्रतीक्षा में मजनूं की झुकी हुई ( वृक्ष ) की लम्बी टहनियों को झूलते हुए, हिलोरे खाती, निरंतर देखती रही, मानो वह मुझे किसी के आने का शुभ संकेत दे रही हो, लेकिन तुम्हारा दीदार न हो सका।
तुम्हारी प्रतीक्षा में मैने माश (माह ) भिगो कर सिड़कु बनाने की तैयारी कर ली है। मैं अपने हाथों से तुम्हें यह पहाड़ी स्वादिष्ट पकवान बनाकर खिलाना चाहती हूँ। इसी बहाने हर पल, हर क्षण तुम्हारे आने की राह देख रही हूँ। तुम आओगे ना?
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गायक : डॉ कृष्ण लाल सहगल
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Email : drkrishanlalsehgal85@gmail.com
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