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लखनऊ के कृष्ण नगर में स्थित सहसेवीर बाबा मंदिर लगभग 250 साल पुराना है। इसकी मानता है कि जो भी यहां पर आकर मीठे बताशे चढ़ाकर मन्नत मांगता है उसकी मन्नत पूरी हो जाती है। फिलहाल यह मंदिर किसी पौराणिक कहानियों से संबंधित नहीं रखता लेकिन इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि जो भी इस मंदिर में सच्चे मन से आता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है, इतना ही नहीं जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हुई हैं उन्होंने सहसेवीर बाबा मंदिर की छत बनाने का जिम्मा उठाया, पूरे मन और श्रद्धा के साथ मंदिर की छत का निर्माण भी शुरू किया गया। छत का निर्माण कार्य पूरी तरीके से हो जाने के बाद 24 घंटे के अंदर ही छत टूट कर गिर गई। लोगों को लगा कि हो सकता है छत ठीक से नहीं बनी थी जिसकी वजह से वह गिर गई इसके बावजूद फिर से दोबारा छत बनाने की कोशिश की गई और छत बनकर तैयार भी हो गई लेकिन पहले की तरह फिर से मंदिर की छत 24 घंटे के अंदर टूट कर फिर से गिर गई।
मंदिर पुजारी और वहां के निवासियों का कहना है कि हो सकता है सहसेवीर बाबा खुले में रहना पसंद करते हैं जिसकी वजह से यहां पर छत नहीं ठहर रही है। मंदिर में छत बनाने का सिलसिला अभी भी खत्म नहीं हुआ कुछ सालों बाद एक भक्त ने मंदिर की छत बनाने का बीड़ा उठाया लेकिन उस वक्त भी ठीक ऐसा ही हुआ कि मंदिर की छत बनने के 24 घंटे के अंदर ही मंदिर की छत टूट कर गिर गई। बताया जा रहा है कि मंदिर की छत चार से पांच बार बनाने की कोशिश की गई लेकिन एक बार भी मंदिर की छत बन के तैयार नहीं हो पायी। 2009 में आखिरी बार मंदिर की छत फिर से बनाने की कोशिश की गई लेकिन इस बार बड़े आर्किटेक्ट की मदद ली गई। साथ ही छत बनाने में जिन-जिन मटेरियल की आवश्यकता थी उसका विशेष रूप से ध्यान दिया गया। मंदिर की छत का कार्य शुरू किया गया मंदिर की छत बनकर पूरी तरीके से तैयार भी हो गई लेकिन फिर वही घटना 24 घंटे के अंदर मंदिर के छत टूट कर गिर गई वह दिन रहा और आज का दिन मंदिर की छत नहीं बनी।
बताया जा रहा है कि सहसेवीर बाबा के सात भाई हैं और यह सातों भाई लखनऊ के ही आसपास क्षेत्र में विद्यमान हैं और इनके मंदिर भी बने हैं लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि इन सातों मंदिर में छत नहीं है। तब से लोगों में मान्यता हो गई है कि लगता है कि अब यह मंदिर बिना छत्र का ही रहेगा। हर साल इसी मंदिर में बहुत बड़े भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर में दूरदराज के लोग अपनी मन्नत मांगने आते हैं और श्रद्धा पूर्वक अपना सर झुकाते हैं।
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