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प्रियजन,
श्री गुरु रविदास जी दयामेहर कर हम जीवों को चेताह रहे हैं, 'माधौ, का कहीऐ भ्रम अैसा, तुम कहीयत होहु न जैसा' कि अफसोस! क्या कहें, कुछ कहा नहीं जा सकता कि जैसा सब समझते हैं जैसा कि सबका भ्रम है, यह भ्रमजाल वैसा नहीं है। गुरुदेव फरमा रहे हैं, परमपिता परमात्मा से हम अलग नहीं हैं, एकमेक हैं पर कुल मालिक का अंशी होते हुए भी इस सपनेउ जगत में भिखारी समान हैं।
गुरुसाहब फरमा रहे हैं कि कर्ता पुरुष एक है, उसी ने यह खेल रचा हुआ है, यह सब उसी का खेला है। शेष सभी जग उस एक कर्ता पुरुष का भक्त है। घट-घट में वही है, सभी उसकी विधि में है।🙏