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वैदिक पंचांग के
अनुसार, बगलामुखी जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है।
बगलामुखी दस
महाविद्याओं में आठवीं महावविद्या हैं। इनका ध्यान बगुला पक्षी की तरह एकाग्र है। इसलिए इन्हें
बगलामुखी कहते हैं।
मंगल
करने वाली देवी पीतांबरा यानी बगुलामुखी को भी मंगल प्रिय है। यदि आप किसी मुकदमे
में फंसे हैं, शत्रुओं से त्रस्त हैं, घर में कोई मुश्किल है और उसका
निदान नहीं हो रहा है या अपनी संतान को लेकर चिंतित हैं तो मां पीतांबरा आपका
कल्याण करेंगी।
जब-जब ब्रह्मांड में कोई संकट आया, देवी-देवताओं ने प्रकट होकर
उसे अपनी शक्ति से दूर किया। पौराणिक ग्रंथों में दशमहाविद्या यानी दस महान विद्या
रूपी देवियों का जिक्र मिलता है। इन्हें पार्वती देवी के दस रूपों के रूप में जाना
जाता है। इनमें से एक हैं, मां बगलामुखी।
विष्णुजी
ने धरती पर आए भयंकर तूफान का नाश करने के लिए तप किया और मां बगलामुखी प्रकट
हुईं।
सतयुग की
बात है। एक बार पूरे ब्रह्मांड में एक भयंकर तूफान उठा। वो तूफान इतना शक्तिशाली
था कि उसके प्रभाव से समस्त प्राणी जगत का नाश हो जाता। इस तूफान से सभी लोकों में
हाहाकार मच गया। भगवान विष्णु को जग के पालनहार के रूप में माना जाता था। सभी देव
और ऋषि-मुनि विष्णुजी के पास पहुंचे। उन्होंने भगवान विष्णु से इस भयंकर तूफान को
रोकने के लिए कोई उपाय करने का आग्रह किया।
इस समस्या से विष्णुजी चिंतित हो गए। वह खुद अकेले इस शक्तिशाली तूफान का मुकाबला
नहीं कर सकते थे। इसलिए वह धरती पर आए और सौराष्ट्र देश (वर्तमान के गुजरात) में
स्थित हरिद्रा नाम के एक सरोवर के पास पहुंचे। वहां विष्णुजी ने भगवती को प्रसन्न
करने के लिए कठोर तप शुरू किया।
विष्णुजी के तप से हरिद्रा सरोवर का पानी हल्दी की तरह पीले रंग में तब्दील हो
गया। कुछ समय बाद सरोवर से बगलामुखी के रूप में श्रीविद्या प्रकट हुईं। विष्णुजी
ने उन्हें समस्या बताई। मां बगलामुखी ने शक्तिशाली तूफान का मुकाबला किया और उसका
नाश कर दिया।
मां
बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन
में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है.
मंगलवार चतुर्दशी बीर
रात्रि विख्यात
कुल नक्षत्र मकार में प्रगटि बगलामां।
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