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आज हम आये हैं विंध्यांचल में निवास करने वाली माँ विंध्यवासिनी के दरबार में। ये विंध्यवासिनी देवी कोई और नहीं बल्कि स्वयं परा आदिशक्ति योगमाया को ही कहा जाता है। वही योगमाया जिनके पिता थे नन्द बाबा और माँ थी देवी यशोदा।
इस महाशक्तिपीठ में देवी का पूजन वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से होता है।
इन्हें वनदुर्गा भी कहा जाता है। सम्भवत:पूर्वकाल में विंध्य-क्षेत्रमें घना जंगल होने के कारण ही भगवती विन्ध्यवासिनीका वनदुर्गा नाम पडा। वन को संस्कृत में अरण्य कहा जाता है। इसी कारण ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी विंध्यवासिनी-महापूजा की पावन तिथि होने से अरण्यषष्ठी के नाम से विख्यात हो गई है।