ॐ नमः शिवाय। जय शिव शक्ति महादेव। को हम सबकी तरफ से राम राम।🙏🙏🌹🌹
@barshamahananda79135 ай бұрын
ॐ गौरीशंकराय नमः 🙏
@shubhameducation6743Ай бұрын
गुरुदेव हम भी करते हे ❤❤❤
@PriyankaPandey-oc3jm Жыл бұрын
जय माता दी 🙏🙏🙏
@shivcharansen97546 ай бұрын
*Har Har mahadev* 🙏🙏🙏
@pratimadhiman19643 ай бұрын
Mata apko sat sat pranaam.
@Ranjanankorchey4030 Жыл бұрын
Jay mata di 🙏🙏
@arpitayadav59455 ай бұрын
Jai ho maa manglaGauri 🙏🙏🙏🙏🙏
@PriyankaKumari-c6b9x11 ай бұрын
Hey bhole baba maa parvati mrei sadi ramkeshwer se ho jaye bhole baba maa parvati ka aasirvad se meri sadi ramkeshwer se ho jaye ramkeshwer ka sadi sirf or sirf mujhse hogi please mata rani bhole baba🙏🙏
@deepakbhatt1537 ай бұрын
1) Parvati Mangal Stotra बिनइ गुरहि गुनिगनहि गिरिहि गननाथहि ।ह्रदयँ आनि सिय राम धरे धनु भाथहि ।।1।। गावउँ गौरि गिरीस बिबाह सुहावन ।पाप नसावन पावन मुनि मन भावन ।।2।। कबित रीति नहिं जानउँ कबि न कहावउँ ।संकर चरित सुसरित मनहि अन्हवावउँ ।।3।। पर अपबाद-बिबाद-बिदूषित बानिहि ।पावन करौं सो गाइ भवेस भवानिहि ।।4।। जय संबत फागुन सुदि पाँचै गुरु छिनु ।अस्विनि बिरचेउँ मंगल सुनि सुख छिनु छिनु ।।5।। गुन निधानु हिमवानु धरनिधर धुर धनि ।मैना तासु घरनि घर त्रिभुवन तियमनि ।।6।। कहहु सुकृत केहि भाँति सराहिय तिन्ह कर ।लीन्ह जाइ जग जननि जनमु जिन्ह के घर ।।7।। मंगल खानि भवानि प्रगट जब ते भइ ।तब ते रिधि-सिधि संपति गिरि गृह नित नइ ।।8।। नित नव सकल कल्यान मंगल मोदमय मुनि मानहिं ।ब्रह्मादि सुर नर नाग अति अनुराग भाग बखानहीं ।। पितु मातु प्रिय परिवारु हरषहिं निरखि पालहिं लालहिं ।सित पाख बाढ़ति चंद्रिका जनु चंदभूषन भालहिं ।।1।। कुँअरि सयानि बिलोकि मातु-पितु सोचहिं ।गिरिजा जोगु जुरिहि बरु अनुदिन लोचहिं ।।9।। एक समय हिमवान भवन नारद गए ।गिरिबरु मैना मुदित मुनिहि पूजत भए ।।10।। उमहि बोलि रिषि पगन मातु मेलत भई ।मुनि मन कीन्ह प्रणाम बचन आसिष दई ।।11।। कुँअरि लागि पितु काँध ठाढ़ि भइ सोहई ।रूप न जाइ बखानि जानु जोइ जोहई ।।12।। अति सनेहँ सतिभायँ पाय परि पुनि पुनि ।कह मैना मृदु बचन सुनिअ बिनती मुनि ।।13।। तुम त्रिभुवन तिहुँ काल बिचार बिसारद ।पार्वती अनुरूप कहिय बरु नारद ।।14।। मुनि कह चौदह भुवन फिरउँ जग जहँ जहँ ।गिरिबर सुनिय सरहना राउरि तहँ तहँ ।।15।। भूरि भाग तुम सरिस कतहुँ कोउ नाहिन ।कछु न अगम सब सुगम भयो बिधि दाहिन ।।16।। दाहिन भए बिधि सुगम सब सुनि तजहु चित चिंता नई ।बरु प्रथम बिरवा बिरचि बिरच्यो मंगला मंगलमई ।। बिधिलोक चरचा चलति राउरि चतुर चतुरानन कही ।हिमवानु कन्या जोगु बरु बाउर बिबुध बंदित सही ।।2।। मोरेहुँ मन अस आव मिलिहि बरु बाउर ।लखि नारद नारदी उमहि सुख भा उर ।।17।। सुनि सहमे परि पाइ कहत भए दंपति ।गिरिजहि लगे हमार जिवनु सुख संपति ।।18।। नाथ कहिय सोइ जतन मिटइ जेहिं दूषनु ।दोष दलन मुनि कहेउ बाल बिधु भूषनु ।।12।। अवसि होइ सिधि साहस फलै सुसाधन ।कोटि कलप तरु सरिस संभु अवराधन ।।20।। तुम्हरें आश्रम अबहिं ईसु तप साधहिं ।कहिअ उमहि मनु लाइ जाइ अवराधहिं ।।21।। कहि उपाय दंपतिहि मुदित मुनिबर गए ।अति सनेहँ पितु मातु उमहि सिखवत भए ।।22।। सजि समाज गिरिराज दीन्ह सबु गिरिजहि ।बदति जननि जगदीस जुबति जनि सिरजहि ।।23।। जननि जनक उपदेस महेसहि सेवहि ।अति आदर अनुराग भगति मनु भेवहि ।।24।। भेवहि भगति मन बचन करम अनन्य गति हर चरन की ।गौरव सनेह सकोच सेवा जाइ केहि बिधि बरन की ।। गुन रूप जोबन सींव सुंदरि निरखि छोभ न हर हिएँ ।ते धीर अछत बिकार हेतु जे रहत मनसिज बस किएँ ।।3।। देव देखि भल समय मनोज बुलायउ ।कहेउ करिअ सुर काजु साजु सजि आयउ ।।25।।
@deepakbhatt1537 ай бұрын
(2) बामदेउ सन कामु बाम होइ बरतेउ ।जग जय मद निदरेसि फरु पायसि फर तेउ ।।26।। रति पति हीन मलीन बिलोकि बिसूरति ।नीलकंठ मृदु सील कृपामय मूरति ।।27।। आसुतोष परितोष कीन्ह बर दीन्हेउ ।सिव उदास तजि बास अनत गम कीन्हेउ ।।28।। दोहाअब ते रति तव नाथ कर होइहि नाम अनंगु |बिनु बपू ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु || जब जदुबंस कृष्ण अवतारा | होइहि हरण महा माहि भारा ||कृष्न तनय होइहि पति तोरा | बचनु अन्यथा होइ ना मोरा || उमा नेह बस बिकल देह सुधि बुधि गई ।कलप बेलि बन बढ़त बिषम हिम जनु दई ।।29।। समाचार सब सखिन्ह जाइ घर घर कहे ।सुनत मातु पितु परिजन दारुन दुख दहे ।।30।। जाइ देखि अति प्रेम उमहि उर लावहिं ।बिलपहिं बाम बिधातहि दोष लगावहिं ।।31।। जौ न होहिं मंगल मग सुर बिधि बाधक ।तौ अभिमत फल पावहिं करि श्रमु साधक ।।32।। साधक कलेस सुनाइ सब गौरिहि निहोरत धाम को ।को सुनइ काहि सोहाय घर चित चहत चंद्र ललामको ।। समुझाइ सबहि दृढ़ाइ मनु पितु मातु, आयसु पाइ कै ।लागी करन पुनि अगमु तपु तुलसी कहै किमि गाइकै ।।4।। फिरेउ मातु पितु परिजन लखि गिरिजा पन ।जेहिं अनुरागु लागु चितु सोइ हितु आपन ।।33।। तजेउ भोग जिमि रोग लोग अहि गन जनु ।मुनि मनसहु ते अगम तपहिं लायो मनु ।।34।। सकुचहिं बसन बिभूषन परसत जो बपु ।तेहिं सरीर हर हेतु अरंभेउ बड़ तपु ।।35।। पूजइ सिवहि समय तिहुँ करइ निमज्जन ।देखि प्रेमु ब्रतु नेमु सराहहिं सज्जन ।।36।। नीद न भूख पियास सरिस निसि बासरु ।नयन नीरु मुख नाम पुलक तनु हियँ हरु ।।37।। कंद मूल फल असन, कबहुँ जल पवनहि ।सूखे बेल के पात खात दिन गवनहि ।38।। नाम अपरना भयउ परन जब परिहरे ।नवल धवल कल कीरति सकल भुवन भरे ।।39।। देखि सराहहिं गिरिजहि मुनिबरु मुनि बहु ।अस तप सुना न दीख कबहुँ काहुँ कहु ।।40।। काहूँ न देख्यौ कहहिं यह तपु जोग फल फल चारि का ।नहिं जानि जाइ न कहति चाहति काहि कुधर-कुमारिका ।। बटु बेष पेखन पेम पनु ब्रत नेम ससि सेखर गए ।मनसहिं समरपेउ आपु गिरिजहि बचन मृ्दु बोलत भए ।।5।। देखि दसा करुनाकर हर दुख पायउ ।मोर कठोर सुभाय ह्रदयँ अस आयउ ।।41।। बंस प्रसंसि मातु पितु कहि सब लायक ।अमिय बचनु बटु बोलेउ अति सुख दायक ।।42।। देबि करौं कछु बिनती बिलगु न मानब ।कहउँ सनेहँ सुभाय साँच जियँ जानब ।।43।। जननि जगत जस प्रगटेहु मातु पिता कर ।तीय रतन तुम उपजिहु भव रतनाकर ।।44।। अगम न कछु जग तुम कहँ मोहि अस सूझइ ।बिनु कामना कलेस कलेस न बूझइ ।।45।। जौ बर लागि करहु तप तौ लरिकाइअ ।पारस जौ घर मिलै तौ मेरु कि जाइअ ।।46।। मोरें जान कलेस करिअ बिनु काजहि ।सुधा कि रोगिहि चाहइ रतन की राजहि ।।47।। लखि न परेउ तप कारन बटु हियँ हारेउ ।सुनि प्रिय बचन सखी मुख गौरि निहारेउ ।।48।। गौरीं निहारेउ सखी मुख रुख पाइ तेहिं कारन कहा ।तपु करहिं हर हितु सुनि बिहँसि बटु कहत मुरुखाई महा ।। जेहिं दीन्ह अस उपदेस बरेदु कलेस करि बरु बावरो ।हित लागि कहौं सुभायँ सो बड़ बिषम बैरी रावरो ।।6।। कहहु काह सुनि रीझिहु बर अकुलीनहिं ।अगुन अमान अजाति मातु पितु हीनहिं ।।49।। भीख मागि भव खाहिं चिता नित सोवहिं ।नाचहिं नगन पिसाच पिसाचिनि जोवहिं ।।50।।
@deepakbhatt1537 ай бұрын
(3) भाँग धतूर अहार छार लपटावहिं ।जोगी जटिल सरोष भोग नहिं भावहिं ।।51।। सुमुखि सुलोचनि हर मुख पंच तिलोचन ।बामदेव फुर नाम काम मद मोचन ।।52।। एकउ हरहिं न बर गुन कोटिक दूषन ।नर कपाल गज खाल ब्याल बिष भूषन ।।53।। कहँ राउर गुन सील सरूप सुहावन ।कहाँ अमंगल बेषु बिसेषु भयावन ।।54।। जो सोचइ ससि कलहि सो सोचइ रौरेहि ।कहा मोर मन धरि न बिरय बर बौरेहि ।।55।। हिए हेरि हठ तजहु हठै दुख पैहहु ।ब्याह समय सिख मोरि समुझि पछितैहहु ।।56।। पछिताब भूत पिसाच प्रेत जनेत ऎहैं साजि कै ।जम धार सरिस निहारि सब नर्-नारि चलिहहिं भाजि कै ।। गज अजिन दिब्य दुकूल जोरत सखी हँसि मुख मोरि कै ।कोउ प्रगट कोउ हियँ कहिहि मिलवत अमिय माहुर घोरि कै ।।7।। तुमहि सहित असवार बसहँ जब होइहहिं ।निरखि नगर नर नारि बिहँसि मुख गोइहहिं ।।57।। बटु करि कोटि कुतरक जथा रुचि बोलइ ।।अचल सुता मनु अचल बयारि कि डोलइ ।।58।। साँच सनेह साँच रुचि जो हठि फेरइ ।सावन सरिस सिंधु रुख सूप सो घेरइ ।।59।। मनि बिनु फनि जल हीन मीन तनु त्यागइ ।सो कि दोष गुन गनइ जो जेहि अनुरागइ ।।60।। करन कटुक चटु बचन बिसिष सम हिय हए ।अरुन नयन चढ़ि भृकुटि अधर फरकत भए ।।61।। बोली फिर लखि सखिहि काँपु तन थर थर ।आलि बिदा करु बटुहि बेगि बड़ बरबर ।।62।। कहुँ तिय होहिं सयानि सुनहिं सिख राउरि ।बौरेहि कैं अनुराग भइउँ बड़ि बाउरि ।।63।। दोष निधान इसानु सत्य सबु भाषेउ ।मेटि को सकइ सो आँकु जो बिधि लिखि राखेउ ।।64।। को करि बादु बिबादु बिषादु बढ़ावइ ।मीठ काहि कबि कहहिं जाहि जोइ भावइ ।।65।। भइ बड़ि बार आलि कहुँ काज सिधारहिं ।बकि जनि उठहिं बहोरि कुजुगति सवाँरहिं ।।66।। जनि कहहिं कछु बिपरीत जानत प्रीति रीति न बात की ।सिव साधु निंदकु मंद अति जोउ सुनै सोउ बड़ पातकी ।। सुनि बचन सोधि सनेहु तुलसी साँच अबिचल पावनो ।भए प्रगट करुनासिंधु संकरु भाल चंद सुहावनो ।।8।। सुंदर गौर सरीर भूति भलि सोहइ ।लोचन भाल बिसाल बदनु मन मोहइ ।।67।। सैल कुमारि निहारि मनोहर मूरति ।सजल नयन हियँ हरषु पुलक तन पूरति ।।68।। पुनि पुनि करै प्रनामु न आवत कछु कहि ।देखौं सपन कि सौतुख ससि सेखर सहि ।।69।। जैसें जनम दरिद्र महामनि पावइ ।पेखत प्रगट प्रभाउ प्रतीति न आवइ ।।70।। सुफल मनोरथ भयउ गौरि सोहइ सुठि ।घर ते खेलन मनहुँ अबहिं आई उठि ।।71।। देखि रूप अनुराग महेस भए बस ।कहत बचन जनु सानि सनेह सुधा रस ।।72।। हमहि आजु लगि कनउड़ काहुँ न कीन्हेउँ ।पारबती तप प्रेम मोल मोहि लीन्हेउँ ।।73।। अब जो कहहु सो करउँ बिलंबु न एहिं घरी ।सुनि महेस मृदु बचन पुलकि पायन्ह परी ।।74।। परि पायँ सखि मुख कहि जनायो आपु बाप अधीनतापरितोषि गरिजहि चले बरनत प्रीति नीति प्रबीनता ।। हर हृदयँ धरि घर गौरि गवनी कीन्ह बिधि मन भावनो ।आनंदु प्रेम समाजु मंगल गान बाजु बधावनो ।।9।। सिव सुमिरे मुनि सात आइ सिर नाइन्हि ।कीन्ह संभु सनमानु जन्म फल पाइन्हि ।।76।। सुमिरहिं सकृत तुम्हहि जन तेइ सुकृति बर ।नाथ जिन्हहि सुधि करिअ तिनहिं सम तेइ हर ।।76।।