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"त्यागमूर्ति महर्षि दधीचि"
हे कृपा सिन्धु ,हे विश्व बन्धु ,
हे ऋषि दधीची,हे पथ ललाम।
हे ऋषि अथर्व के कुल दीपक,
शत् शत् वंदन,शत् शत् प्रणाम।।---01
हे भारत भू के कल्पवृक्ष ,
हेआदिशक्ति, हे कृपा निधान।
हे विश्वनाथ के परम उपासक,
हे तेज पुंज , देदिप्यमान ।। ---02
श्री विष्णु के नाभी कमल से,
ब्रह्म देव सृष्टी पर आये।
ब्रह्मा के दस पुत्र हुए,
ऋषि अथर्व जेष्ठ कहलाये।।---03
हर्षित होकर देवलोक सब,
करें आज यू अभिनंदन।
भादव शुक्ल अष्ठमी को,
प्रकटे श्री अथर्वा नन्दन।। ---04
ऋषि अथर्वा ओर शान्ता ने,
विष्णू माया का ध्यान किया।
विष्णु माया ने खुश होकर,
शान्ता को वरदान दिया।।---05
शान्ता ने मांगा एक सुवन,
और एक सुता जग विख्याता।।
ये दोनो थे भाई बहिन,
श्री दधीचि ओर दधिमति माता।। ---06
ऐसा त्यागी ऐसा दानी,
कब दुनियां में आता है।
जो जनहित मैं हर्षित होकर
प्राणों की बली चढा़ता है।---07
दिव्य शस्त्र-बने अस्थि सें,
किया दानवों का संहार।
बज्र पिनाक सारगं संग,
बना गांडीव का आधार।।--08
यह पृथ्वी सूरज इन्दु तारे,
जब तक यहां जगमगायेगें।
तब तक भूमण्डल के जीव ,
गुण ऋषि दधीचि के गायेगें।।---09
वृत्रासुर- दुष्ट महा दानव ,
जिससे ऋषि मुनी घबराते थे।
इधर उधर छिपते फिरते,
पर अमर विजय नही पाते थे।।--10
हा हा कार मचा सृष्टी पर,
सब देवो ने जाय पुकार करी।
त्राही माम- त्राही माम, करे सभी
है सृष्टी सारी- डरी डरी।।---11
विष्णु जी ने कहा देवो से ,
ऋषि दधीचि अस्थिदान करे।
तो वृत्रासुर मारा जावे ,
वे सृष्टी का कल्याण करे।।---12
देवो ने जाकर विनय करी,
ऋषि दधिची ने अस्थिदान दिया।
जीवन दे दिया परहित में,
सब देवो का सम्मान किया।।--13
जब ऋषि ने अस्थिदान किया,
तब उनकी पत्नी थी गर्भवति।
पति वियोग में प्राण त्याग कर,
उनके संग हो जाऊ सती।।--14
देवो ने उसको समझाया की,
ऋषि का अंश कोख में है।
सोचो समझो विचार करो,
माना की आप शोक में है।।---15
अपना गर्भ पीपल को देकर,
पतिव्रता का धर्म निभा डाला।
बालक का नाम पिप्लाद हुआ,
मां दधिमती ने उसको पाला।।---16
ऋषि पिप्लाद जब योग्य हुए,
वे रुद्रावतार बलशाली थे।
मां दधिमती के थे भक्त बडे,
ओर ब्रह्म वंश प्रतिपाली थे।।---17
इनके द्वादश पुत्र हुऐ,
वे हर विधा मे माहिर थे।
गौतम अत्री,शांडिल्य,गर्ग,
पाराशर जग में जाहिर थे।।---18
ऋषि कश्यप,कपिल मुनि,
और भारद्वाज से त्यागी थे।
ऋषि भार्गव ,वत्स कौत्स जैसे,
वे सब होनहार बड़भागी थे।।--19
दाधीच वंश के सभी गौत्र,
द्वादश ऋषियों में आते है।
शाखाऐं सत चालीस चार,
अवटंक अठारह पाते है।।--20
इन की यश गाथा का में,
कब तक ओर बखान करू।
में मुढ़ मति बालक निशदिन,
पद पंकज का धयान धरु।।--21
जिनकी पूजा करे देवता,
उसी चरण की में रज हूं।
में उसी वृक्ष का वंशज हू,
में उसी ......................
दामोदर दाधीच